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________________ BE मूलाराधना आवास १८३० अनादेयाघशो निर्माण थापूर्णानि दुर्भगम् ॥ वेद्यमन्यतरत्तस्य वृषासप्ततिरुपान्तमे ।। २२०२ ॥ अंतिमे समये इत्वा प्रकृतीः स त्रयोदश ॥ बंद्यमानः सदाऽयोगःप्रयाति पदमव्ययम ।। २२०३ ।। विजयोदया-चरिमसमरामि अंत्ये समग क्षगान गाना ही नीर्थकरजिनः । शपसर्वज्ञः । पकादश नामक्खपण नामनो विनाशेन तेजसशरीरबंधो नश्यति । आयुषः क्षण औदारिकर्वधनाशः॥ तीर्थकरेतरचरमक्षणक्षपणीयाः प्रकृती:संख्याविशेषणावधारयतिमूलारा–चारसमणुस्सगदिमित्यादिना प्रागुक्ताः॥ अर्थ- अन्त्यसमयमें तीर्थकरकेवली अनुभवमें आनेवाली पारा प्रकृतिओंका क्ष्य करते हैं और सामान्य केवली ग्यारह प्रकृतिका क्षय करते हैं. णामक्खएण तेजोसरीरबंधी वि खीयदे तस्स ॥ आउखएण ओरालियरस बंधो चि खीयदि से ॥ २१२६ ॥ तं सो बंधणमुक्को उर्दू जीवो पओगदो जादि ॥ जह एरण्डयचीयं बंधणमुक्कै समुप्पपदि ॥ २१२७ ॥ नामकर्मक्षयात्तस्य तेजोवन्धः प्रलीयते ॥ औदारिकवपुर्वधो न सन्यायुःक्षये सति ॥ २२०४ ।। एरंडवीजवजीवो बन्धव्यपगमे सति ।। उदय याति निसर्गेण शिवेव विषमार्चिषः ॥ १२०५॥ विजयोदया-स्पष्टोत्तरगाधान्यं । तेजसौदारिफशरीरबंधविकछेदनिधनविषनिर्देशार्थमाइ मुलारा-तेया जसं । ओरालिदस्स औदारिकशरीरस्य । एधी अन्योन्यप्रदेशानुप्रदेर्शनकत्वापत्त्यावस्थानम् । इति जीवन्मुरितवर्णनम् ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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