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________________ मूलाराधना आश्वास १८२१ - - समुद्घातमतरेण शैलेश्योपगमे कारणमघातिचतुष्टयसमस्थितित्वमाषष्टेमूलारा-नवणमंति-आश्रयन्ति । सेलेसिं शीलगुणसं पूर्णतां ॥ अर्थ- अयुके समानही अन्य कमकी स्थिति धारण करनेवाले कवली समुबात किये बिना संपूर्ण । शीलोंके धारक बनते हैं. जेसिं हवंति विसमाणि णामगोदाउवेदणीयाणि ॥ ते दु कदसमुग्यादा जिणा उवणमंति सेलेसिं ॥ २१११ ॥ ठिदिसंतकम्मसमकरणत्थं सब्वेसि तेसि कम्माणं ॥ अंतीमुहत्त सेंस जति समुग्घादमाउम्मि ॥ २११२ ॥ यदायुषोऽधिकं कर्म जायते त्रितयं परम् ॥ समुद्धातं तदाभ्येति तत्समीकरणाय सः ॥ २१८५॥ अंतमूहर्तशेषायुर्यदा भवति संयमी ॥ समुद्धातं तदा धीरो विधत्ते कर्मधूतये ।। २१८६ ॥ विजयोदया-डिदिससकम्म सत्कर्मणां स्थिति समीकर्तुं चतुर्णा अंतमहावशेष आयुपि समुद्धातं याति ॥ व्यतिरेकेणाइमूलारा-स्पष्टम् ।। पता श्रीविजयो नेच्छति ॥ दंडादिस मुद्घातविधानप्रयोजनमादिशति-- मूलारा-ठिदिसंतकम्मसमकरण । स्थित्या कृत्या सतां विद्यमानानां चतुणी कर्मणां ममपरिणामतः कर्तु ।। अर्थ-जिनके वेदनीय नाम, और गोत्रकर्मकी स्थिति अधिक रहती है वे केवलि भगवान समुद्घातके द्वारा उनकी आयुकौके परामरीकी स्थिति करते हैं इस प्रकार वे संपूर्ण शीलके धारक बनते है. अर्थ--आयुकर्म अंतमुहर्तमात्र जब रहता है तब नाम गोत्र और बेदनीय कर्मकी स्थिति आयुके समान करने के लिए समुद्धात करते है. १८२१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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