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________________ । मूलाराधना विजयोदयासजमायकालपटिलहणादिकायों स्वाध्यायकालप्रतिलेखनादिका किया संति यस्मात मशा ममध्येपि तस्य ध्यानं न प्रतिषिखं । स्वाध्यायकालगवेषणादिना पित्तावक्षेपसंभवे क्षेत्राशुद्धौ वा थ्यानाप्रवृत्तेः कथं तस्याहोरात्रिकमात्मध्यावं स्यावित्यवाह मुलारा-पहिलेइणा गवेषणा शुद्धियों । सुसाण श्मशान । अपरिसिध्धं न प्रतिषिद्ध ।। अर्थ---स्वाध्याय काल और शुद्धि वगैरह क्रियायें उनकी नहीं हैं. श्मशानमें भी उनको ध्यानके लिये । निषध नहीं है. आवासगे च कुणदे उवधोकालम्मि जं जहि कमदि॥ उवकरणपि पडिलिहइ उवधोकालम्मि जदणाए । २०५५ ॥ यथोक्तं कुरुते सर्वमावश्यकमतंद्रितः । विधत्ते सद्वयं कालं उपधिप्रतिलेखनम् ॥ २१२६॥ विजयोदया-आवासगं च कुणदे आवश्यकं घ करोति कालइयेऽपि यस्मिन्काले प्रवर्वते, उपकरणप्रतिलेखममरि पत्मेम कालमये करोति।। . . . एवं तहि नावश्यकादिकमध्यसौ बिधास्यतीत्याशंकामपाकरोति-- मूलारा-च पुनः । उबंधोकाळम्मि रात्रिदिनयोः । कर्मादि प्रवर्तते ।। अर्थ--जो आवश्यककर्म जिस कालमें करने का विधान कहा गया है उस काल में ये मुनि वह कर्म करते हैं। उपकरणोंका प्रतिलेखन-शुद्धि मी प्रयत्नसे सूर्योदय और सूर्यास्त समयमें अवश्य करते हैं. सहसा चुकरकलिदै णिसीधियादीसु मिच्छकारे सो ॥ आसिअणिसीधियाओं णिग्गमणपवेसणं कुणइ ।। २०५६ ॥ सहसा स्खलने जाते मिथ्याकार करोति सः।। आसीनिषधकाशदी विनिःक्रांतिप्रषेशयोः ।। २१२७ ।। १७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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