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________________ पत्र मूलाराधना आश्वास tana अर्थ-जो पूर्ण आदरभावसे अन्यों को संपूर्ण आराधनाओंकी प्राप्ति कर देते हैं. उनको सर्व आराधनाओंकी निर्विघ्न प्राप्ति होती है. ये क्षपकप्रेक्षणाय यांति तानपिस्तौति-- से मिकदत्था धण्णा य हुँति जे पावकम्ममलहरणे । व्हायति खवयतित्थे सव्वादरभत्तिसंजुत्ता ॥ २००६ ।। स्नांति क्षपकतीर्थे ये कर्मकर्दमसूदने । पापपंकन मुच्यन्ते धन्यास्तेऽपि शरीरिणः ।। २०७९ ॥ विजयोत्या-तेपि कदत्था तेपि कृतार्था धन्याच भवति ये क्षपकतीर्थे पापकर्मप्रलापहरणे सादगाभियुक्ताः स्मांति ॥ क्षपकप्रेक्षणयात्रिकान्त्रिकत्यते---- मूलारा-- वि किं पुननिर्यातका इत्यपिशब्देनोच्यते । पहायन्ति स्नान्ति 1 क्षरकपेक्षणाचनादिताः वात्मानं शोधयन्तीत्यर्थ: । सवयतित्थं क्षपातीर्थ संसारसरिदुतारणनिमित्तत्वात् ।। जो क्षपकके दर्शन करन के लिये जाते हैं उनकी स्तुति अर्थ-जो पुरुष संपूर्ण पापरूपी मलहरण करनेमें समर्थ ऐसे क्षपकरूपी तीर्थ में अतिशय भक्तीसे स्नान करते हैं ये रुपक बंदना करनेवाले भध्यजीव कृतार्थ और धन्य हैं. क्षपकस्य तीयतां व्याचऐ गिरिणदियादिपदेसा तित्थाणि तवोधणेहिं जदि उसिदा । तित्थं कधं ण हुज्जो तवगुणरासी सयं खण्ड ॥ २००७ ॥ पर्वतादीनि तीर्थानि सेषितानि सपोधनः ॥ जायंते यदि सत्तीर्घ कथं न क्षपकस्तदा ।। २०८०॥ १७५९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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