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मूलाराधना
आश्वासः
__ अर्थ--परंतु इन दिशाओंकी मिषीधिकाओंका फल इस प्रकार क्रमसे समझ लेना चाहिये. पूर्व दक्षिण दिशामें स्पर्द्धा, अर्थात् मैं ऐसाई ऐसा तूं है। दूसरे इस प्रकारके हैं ऐसी स्पर्धा, उत्पन्न होगी. पाश्चमोत्तरदिशामें कलह होगा, पूर्व दिशामें संघमें फूट पड़ेगी, उत्तर दिशामें व्याधि उत्पन्न होगी, ईशान्य दिशामें संवमें परस्पर स्त्रीचतानी होगी. पूर्वोत्तर दिशामें निपिधिका करनेसे प्रथमतः मुनिमरण होगा पेसा इन दिशाओंका फल है.
जं बेलें कालगदो भिक्खू तं वेलमेव गीहरणं ।। जग्गणबंधणछेदणविधी अवेलाए कादवा ॥ १९७४ ।। यदेव म्रियते काले त्यजनीयस्तदैव सः ।।
अयेलायां विधातव्या छेवबंधनजागराः ।। २०५१ ।। विजयोदया-जबलं कालगवो भिक्खू त खेलमेव जीडवण यस्यां वेलायां मनो भिक्षुः तस्यां वेलायामवापनयने कर्तव्यं, अबलायो मृतश्चेत् जागरणं बंधन छन्दन वा कर्तव्यं ।।
निष्कासनं तद्योम्यवेलायो मृतस्य कार्यमन्यदा जागरणादिकमित्युपदिशति
मूलारा----जं वेलं यस्यां वेलायां । तं बेलमेव तस्यां बेलायामेव । णीहरणं यथाकथंचित्तरेहापनयनं यतिभिः | कर्तव्यम् । अबेलाप अवेलायां मृतस्य ।
अर्थ-जिस समय भिक्षुका मरण हुआ होगा उसी बेलामें उसका प्रेत ले जाना चाहिये. यदि अवेलामें मर जानेपर जागरण, बंधन, अथवा छेदन करना चाहिये. के जागरण कुपतीत्याखो
पाले बुढे सीसे तवस्तिभीरूगिलाणए दुहिदे ॥ आयरिए य विकिचिय धीरा जम्गति जिदणिहः ॥ १९७५ ॥ भीमशेक्षणिग्लानबालवृतपस्विनः।। अपाकृत्यापारधीरा जित निद्राःप्रजापति ।। २०५२ ॥