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________________ मूलाराधना आश्वासा पर भी धैर्यसे डिगते नहीं. श्रद्धा, संवेग-संसारमय, और वीर्य आत्मसामर्थ्यसे वे च्युत नहीं होते हैं. वे उपसर्ग और परीषहों को सह लेते हैं, इय परामवसाद डिवण्णा सुद्धदसणमुवेदा ॥ सोधिति झाणजुत्ता लेस्साओ संकिलिट्ठाओ ॥ १९४४ ॥ सयथाख्यातचारित्राः पवित्रज्ञानदर्शनाः ॥ विशोध्य मलिनां लेश्यां शुद्धध्यानविद्धि नः ।। २०२४ ॥ विजयोदया-इय चरणमघ्रसाद एवं यथाख्यातचारित्रं प्रतिपशः शुद्धदर्शनमुपगता घ्यानयुक्ताः संक्लिप लेझ्या विनाशयति ।। मूलारा-इय एवं चरंतः । सोधिति नाशयन्ति । अर्थ- इस प्रकारसे यथाख्यात चारित्रका लाम कर वे शुद्ध दर्शनको प्राप्त होकर ध्यानमें तत्पर होते हैं और अपने सकिष्ट लेण्याआका-मलिन परिणामोंका क्षय करते हैं. सुक्कं लेरसमुवगदा सुक्कझाणेण खविसंसारा ॥ सम्मुक्ककम्मकच्या सार्वति सिहं धुदकिलेसा ॥ १९४५ ॥ शुक्ललेश्यांगनाश्लिष्टा ध्वस्तनिशिषकल्मषाः॥ भवन्ति सहसा सिद्धा भूवनोत्तमवंदिताः ।। २.२५।। विजयोदया-सुक्क लस्समुचगवा शुक्ललेश्यामुपगताः शुक्लध्यानम क्षपितसंसारा उन्मुक्तकर्मकपचा दुरीफ़त फ्लेशाः सिद्धिमुपयांति ॥ मूलारा स्पष्टम् । अर्थ-शुक्ल लेश्याकी प्राप्ति कर वे आराधक शुक्लथ्यानसे संसारका नाश करते हैं. कर्मरूप कवचको फोडकर संपूर्ण क्लेशोंका अर्थात् चतुर्गतिके दुःखोका नाश करके मुक्त होते हैं. eace P १७१९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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