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________________ eBOURN मूलाराधना आश्वासः १७०४ अर्थ-परिणाम निर्मल होनेसे लेश्याम उत्तरोत्तर निर्मलता होती जाती है, तथा मंदपायी पुरुषके परिणाम निर्मल रहते हैं. कषायाणां मंदता कथमित्यमबाह मंदा हुंति कसाया बाहिरसंगविजडस्स सव्वस्स ॥ गिण्हइ कसायबहुलो चेव हु सव्वंपि गंथकलिं ॥ १९१२ ॥ मंदीभवन्ति जीयस्य कषायाः संगवर्जने ॥ कषायबहुलः सर्व गृहीते हि परिग्रहम् ॥ ९९७३ ॥ विजयोदया-मंदा हुंति कसाया कपाया मंदा भति, कृतबाह्यसंगपरित्यागस्य । कषायपाहुल पवायं सों जीपः सर्व ग्रंथकालिं गृहाति ॥ . . कपायमांधोपायमाह-- . मूलारा--सम्वत्ध मनोवाक कार्यः । गंभकलि गंध एवासौ कलिन पापबंधनिबंधनत्वात् ।। .. कषायोंकी मंदता कैसी होती है । इस प्रश्नका उत्तर अर्थ-जिसने बामपरिग्रहोंका त्याग किया है उसके कपाय मंद होते हैं. कषायोंसे मरा हुआ जीव ही सम्पूर्ण परिग्रहरूप पातकका स्वीकार करता है. . जह इंधणेहिं अग्गी वइ विज्झाइ इंधणेहिं विणा ॥ गंथेहिं तह कसाओ बढुइ विज्झाई. तेहिं विणा ॥ १९१३ ॥ वृद्विहानी कषायाणां संगग्रहणमोक्षयोः ।। अग्नीनामिव काष्ठादिप्रक्षेपणनिरासयोः ॥ १९९४ . बिजयोदया--जह धणेवि अम्गी रंधनैर्यचाग्निर्वते तैर्चिना प्रशाम्पत्ति ग्रंथैस्तथा कषायो बईते, हैबिना मंदो भवति ॥ ग्रंथानां भावाभाषयोः कषायवृत्युपशमनिमित्तत्वं समर्थयते--- मूलारा-सष्टम् ॥ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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