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________________ MPATION मूलाराधना | उस अभिलाषासे कर्मबंध होता है जो कि दुःख देने में कारण है. यह विषयाभिलाषा प्राणिोंमें हमेशा उत्पम || होती है परंतु वह सुखके बदले आत्माका अहितही करती है. यहाँ विषयाभिलाषरूप आबका स्वरूप कहा है. आप्पासा १६१० विषयाभिलायस्य दुतां प्रकारान्तरेणाचरे-- कोई डहिग्ज जह चंदण गरो दारुगं च बहुमोल्लं ॥ गासेइ मणुस्सभवं पुरिसो तह विसर्यलोहेण ॥ १८३० ॥ इंद्रियायमुख धन मानुब्ध प्राप्य योज्यते ॥ भस्मार्थ प्लोषते काष्ठं महामौल्यमसौ स्फुटम् ।। १९०१॥ विजयोदया-कोई हिज जर वर्ण कविधथा हेरुचंदनं । बहुमोल्लं महामूल्य । दासग द अगुपादिवाक घ, यथा दद्दति भस्मादिक स्वल्पं समुद्दिश्य, तद्दा णासेदि मणुस्समंघ तथा नाशयति मानुषमषं अर्नाद्रियानंतसुम्न कारणं । पुरिसो तह बिसयलोभेण अतितुच्छविषयगायन ॥ उक्त च ॥ विषया अनिनेद्रियोत्सवा बहुभिधापि समन्विता रसैः। विषगर्भसुसंस्कृतानषत् परिभुक्ताःपरिणामवारुणाः| विषयसुख प्रतिबद्धलोलवितो विषयमिमिसमनिश्कर्म कस्वा विषय. मुखप्रचिट्ठीणजातिजातो विषयसुखं लभतेन ना पिपुण्यः।। भयंतरेण विषयलापल्यस्य दौष्टयमाचष्टे__ मूलारा--दहेज्ज भस्मार्थ दहेन् । दारुगं का बहुमूल्यमिति विशेषेणागुवादिकम् । मणुस्सभर्व यहूमूल्यमित्यनुवृत्तेरतीन्द्रियानंतसुखकारणसम्यगाचरणमूलं मानुष जन्म ॥ अर्थ--कोई मनुष्य भस्मादिकके लिये अतिशय मूल्यवान् अगुरुचंदनको लकडी जला देता है, वैसे यह मनुष्य भी अतिशय तुच्छ विषयों में लंपट होकर अतीन्द्रिय अनंत सुखको देनेवाले इस मनुष्य जन्मको नष्ट कर देता है. आगममें इस विषयमें ऐसा कहा है-ये विषय इन्द्रियोंको आल्हाद उत्पन्न करते हैं और अनेक रसांसे युक्त है परंतु जैसे विपमिश्रित अन्न बडुत रसोसे युक्त होने पर भी भक्षण करनसे प्राण लेता है वैसे ये विषय आत्माका नाश करते हैं अर्थात दुर्ग में घुमाते हैं. जो मनुष्य विषयसुखमें आसक्त होता है वह उस विषयके लिये अनिष्ट कार्य करता है. जिससे विषयसुखरहित लोगों में जन्म लेता है. उचित ही है कि पुण्यरहित मनुष्यको विषय मुखकी प्राप्ति होती नहीं. 2499TOMANCE
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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