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________________ आश्वासा मूलाराधना मनुजानाम् ॥ रक्को चेव मुभी एक पब शुभः पुनः । सन्त्र सुस्वायरी धम्मो सर्वेषां सौख्यानामाकरो धर्मः ॥ धर्म्यध्यानशुयर्थ अशुचित्वं गायाष्टकेनानुचितच ति अशुचित्राशुभो ऽपध्यश्च भावो मण्यत । तत्रादौ दु: रत्न का मूलरवेन अर्थकामकायानामशुभत्वं व्यवस्थाप्य लोकदयसुग्रप्रदत्यन धर्गम्य शुभत्वं भाषयति-- मूलारा --स्पष्टम् ।। अमुचित्यानुप्रेक्षाका वर्णन अर्थ---अर्थ पुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ अशुभ है. सर्व मनुष्यों का दंह अपवित्र है, एक धर्मही पवित्र है और वही सर्व सौख्योंका दाता है. अर्थस्याशुभता व्यायप्टे इहलोगियपरलोगियदोसे पुरिसस्स आवहइ णिचं ॥ अत्थो अणत्यमूलं महाभयं मुत्तिपडिपंथो ॥ १८१४ ।। अर्थो मूलमनर्थानां निर्वाणप्रतिबंधकः ॥ लोकये महादोषं दसे पुंसां दुरुत्तरम् ।। १८८५ ।। विजयोदया-बद्दलोगियपरलोगियचोसे ऐहिकान् पारलौकिकांश्च दोषान् । पुरिसस्स आवहा णिच्चं पुरुषस्य भापति नित्यं । अस्थो अगत्थमूलं अर्थोऽनर्थानां मूलं, महाभयस्य मूलस्वान्महाभयं | मुत्तिपडिपंथो मुकरर्गलीभूतः ॥ अर्थस्याशुभत्व समर्थयते-- मूलारा--दोसे दुःखानि । 'अपत्धमूल अधर्मविपदादिनिदान । महाभयं विपुलभीतिनिमिनत्वात । मुत्तिपडिपंथो मुक्तरर्गलीभूतः ।। अर्थकी अशुभताका वर्णन---- अर्थ-इह लोकके दोष और परलोकके दोष अर्थ पुरुषार्थस मनुष्यको भोगने पड़ते हैं, अर्थ पुरुपार्थके वश होकर पुरुष अन्याय करता है. चोरी करता है. और राजासे दंडित होता है और परलोकमें नरकमें नाना १६२९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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