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________________ मूलाराधना | आश्वास आहिंडयपुरिसस्स व इमस्त णीया तहिं तहिं होति ॥ सब्वे वि इमो पत्तो संबंधे सव्वजीवहिं ।। १७९८ ॥ सर्व सईः समं प्राप्ताः संबंधा जंतुनांगिभिः॥ भवति भ्रमसः कस्य तत्र तबास्य बांधवास ॥१८७०॥ विजयोदया-आहिउयपुरिसरस व देशांतरं भ्रमतः पुंस इव । इमस्स पीगा ताई तहिं होति अस्य बंधवस्तर तत्र भत्ति । सम्वेचिरमो पत्तो सर्वानयं प्राप्तः । संयंधे संबंधान् । सय्यजीवेहिं सर्वजीवैः सह । धर्मेध्येयतया छोक पंचदशगाथाभिरनुप्रेक्षते । नामस्थापनाद्रव्यादिविकल्पेन यद्यपि पानेकप्रकारो लोकस्तथापि | इहलोकशब्देन जीगर महोम एबोर : सूप कमीप नेस्यान । मूलारा-आहिंडग देशांतरभ्रमणपरः । लोकानुमेक्षाका वर्णन आचार्य करते हैं. नाम स्थापना, द्रव्य वगैरे विकल्पोंसे लोकके अनेक भेद हैं तथापि यह लोग शब्दसे द्रव्यलोक ही ग्राव है, क्योंकि जीवक धर्म प्रवृत्तिका क्रम यहां कहा गया है. अर्थ-एकदंशसे दुसरे देशको जानेवाले पुरुपके समान इस जीवको सर्व जगमें बंधुलाभ होता है अर्थात् सर्व जीवोंसे अनादिकालसे इसका संबंध होता चला आया है. अमुक जीवके साथ इसका पिता पुत्र वगैरह रूपस MI संबंध नहीं हुआ था ऐसा कालही नहीं था अतः सर्व जीव इसके संबंधी है. माया वि होइ भज्जा भजा मायत्त पुणमुवेदि । इय संसारे सच्चे परियट्टते हु संबंधी ॥ १७९९ ॥ माता सता स्नुषा भार्या मुना कांता स्वसा स्नुषा ।। पिता पुत्रो नृपो दासो जायतेऽनतशो भव ॥ १८७१ ।। विजयोदया-मादा य होदि मज्जा माता भार्या भयति । भाषा मातृतां पुनरुपेति । पंवं संसारे सर्व संबंधाः परिवर्तते इति गाथार्थः ॥ मूलारा स्पष्टम् ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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