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लाराधना
आश्वा
इंद्रियार्धाभिलाषारं चंचलं योनिनेमिकं
मिथ्याज्ञानमहातुंब दुःखकीलकयंत्रितम् ।। १८६३ ॥ विजयोदया–विसमामिसारगार्ट विषयाभिलापारर्गाढ स्तब्ध । कुजोगिणमि सुदुक्खदढखीलं कुत्सित योनिनेमिकं । मुहानलं । अनुप्रियानि । कला ढपट्टिगायः कषाय हद पट्टिकाबंध ॥
नलास-विसथामिमाम्गादं विपयाभिलापररैरिव स्तम्भ निधि वा ।
अर्थ-यह संसारचक्र विषयाभिलाषारूपी आरोसे गाढ अर्थात् मजबुत है. कुयोनिरूपी नेमिस युक्त है अर्थात् नरकादि दुर्गतिरूप नेमिस पूठीसे यह संसारचक्र युक्त है. सुखदुःखरूपी कीलसे यह युक्त है नथा इसमें अज्ञानभावरूपी तुंबा है. कषायही इस संसारचक्रपर लोहकी पट्टी है.
बहुजम्मसहरसविसालबत्तणि मोहवेगमहिचवलं ॥ संसारचकमारुहिय भमदि जीवो अणप्पवसो ॥ १७९२॥ कपावपट्टिकाबद्धं जरामरणवर्तनम् ॥
संसारचक्रमामय चिरं भ्राम्यति चेतनः ॥ १८६४ ॥ विजयोदया--बहुजम्मसहस्सरिसालपत्तर्षि अनेकजन्मसहस्राधशालमार्ग । मोहवेग मोहवेगं । संसारचकमासहिय पर्यंभूतं संसारचक्रमारहा। अगम्यवसो जीवो भमधि अनात्मवशो जीपो भ्रमति ।
मूलारा--विसालयत्तणि विपुलमार्ग ॥
अर्थ-अनेक जन्मरूपी विशाल मार्गपर यह संसारचक्र भ्रमण करता है. मोहरूपी वेगसे यह पक अतिश यचंचल दीखता है. ऐसे संसाररूपी चक्रपर आरोहण कर यह जीच परवश होकर भ्रमण करता है.
भारं णरो वहंतो कहंचि विस्समदि ओरुहिय भारं ॥ देहभरवाहिणो पुण ण लहंति वणं पि विस्समिदु ॥ १७९३ ॥ वहमानो नरो भारं कापि विश्राम्पति ध्रुवम् ।। म देहभारमादाय विश्राम्यति कदाचन ॥ १८६५ ।।