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________________ मृलाराधना RAREERTERATURE आश्वासा १५८९ बधूनां हितविघाताहितप्रवर्तनपरत्वेन शत्रुत्वावस्थपनादन्यस्वं भावयभाइमूलारा-असंजमं हिंसानृतस्तेयादिकं ।। बंधुभी वास्तविक शत्रु है ऐसा अभिप्राय अर्थ-- जिसका आचरण करने से संपूर्ण काँका नाश होकर आत्मा को मोक्षप्राप्ति होती है और संसारिक उत्कृष्ट सुख की-अर्थात् जामेन्द्र नुसत्री जिससे प्राति सी ऐसा समय धारण करने में बंधुगण विघ्न उपस्थित करते हैं. इतनाही नहीं परंतु हिंसा, असत्य, चोरी वगैरेह असंयमभी इस जीवसे वे कराने हैं. अति शय घोर, दुःस्सह नरकादि दुःखोंसे प्राणीका उद्धार करनेवाले धर्ममें ये बंधु विघ्न करते हैं और अहितमै प्रवृत्त करते हैं. इस लिये इन बंधुओंमें शत्रुता दीख पडती है. इस प्रकार बंधुओंक विषयमें विचार करना अन्यत्वानु प्रेक्षा है. aaraamanartRNAGATHE 8499999806/ इदानीमन्यशन्देन साधवो भण्यते तेषामुपकारकन्वरूपेणानुप्रक्षेति चेतसि त्या व्याचं णीया सत्तू पुरिसस्स हुंति जदिधम्मविपकरणेण ।। कारति य अतिबहुगं असंजमं तिब्बदुःखयरं ।। १७६५ ।। विजयोन्या-अन्येषां यतीनां येधुलो कथमनस्तुतायो अन्यत्वानुप्रेक्षायामुपयुज्यतेऽस्य । अन्य शब्दसे सत्पुरुषोंका ग्रहण होता है उनको उपकारक समझकर चिंतन करना यह भी अन्यत्यानुप्रेक्षा शब्दका अभिप्राय है. इसका खुलासा अर्थ-बंधुगण यतिधर्ममें चिन्न करनेमें प्रवृत्त होता है और नरकादि गतिओंमें तीन दुःख देनेवाला असंयम कराता है इस लिये बह ही पात्र है. और सत्पुरुष---- पुरिसस्स पुणो साधू उज्जोवं संजणंति जदिधम्मे ।। तध तिव्वदुक्खकरणं असंजमं परिहराति ॥ १७६६ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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