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________________ मूलाराधना आश्वासा १५८५ विजयोदया-भिषणपडिम्मि लोगे नानास्वभावे लोके । फस्स सभावदो पिलो होज्न का कस्य स्वभावेन प्रियो भवेत् । समानशीलतायां हि सख्यं भवति । न च सर्वबंधषः समानशीलाः कथं तर्हि तेषां वा स बांधषः । कज्जं पति संबंधो कार्यमेवोहिश्य संबंध नासति कार्येऽस्ति संबंधः ।यालुगमुट्ठीव वालुकामुएिरिव । जगमिणमो लोकोयं । यथा बालकानां भिन्नप्रकृतीनां वश्यमंतरेण न स्वाभाविक: संयंधो येम संगता मुष्टिमुपेयुः । उदकाविद्रव्योपनीय संगसिस्तासां, एवं कार्योपनीतैब संगतिः स्वजनानां ।। मा भदनुभवविरोधिमा तदात्मनो बंधुभिः संबन्धः। स्वाभाविकमादिभावेन भविष्यति इति मोहादमिनिविशमानमुद्बोधयति मूलारा-भिषणपडिम्मि नानास्वमाये । को इत्यादि समानशीलतायां हि सत्य । न च सर्वे बंधवः समानशीलाः कथं तहि तेषां संबंध इत्याह-कजं पद्धि कार्यमुद्दिश्य, स्वाभिमतसाध्यमपेक्ष्य । संबंधः प्रियत्वेन वृत्तिः । न चायं स्श्रेयान । यल्लोकः गते ते लोचने तात ये लो त्रिफलारसे ।। कार्यानुबंधे यत्प्रेम तविद्धि गतमेव हि ॥ तः कि स्थिमित्याह- जगमिणमो लोकोय। वाल कामुष्टिरिव । यथा बालका अद्रव्येणैव न स्वाभाविक मधेन मंगना: मन्यो मुशिगपंदतथा ज्ञागमः कार्यापेक्षयैव संचद्धा एकत्वं गच्युरिति भावः । एवं च भावयतः का. पिनीनमंगानबलप्रवृननादाम्यविभ्रमविभ्रंशा दन्यत्कान निधन धर्मध्यानाय योग्यता ममुन्भीलति ॥ अर्थ – यह जग नाना स्वभावात्मक है. इसलिय कोन प्राणी स्वभावतः प्रिय है? समानशील प्राणीमही सख्य रहता है. परंतु सर्व बंधु समानशील-समान स्वभाववाले नहीं होने हैं. किस कार्यके वश होकर ही संबंध होता हैं, कार्य हो जानेपर संबंध नष्ट होता है. जैसे बालुके कण भिन्नभिन्न रहते है परंतु उनमें जलादि द्रवपदार्य का प्रवेश होनेपर वे कण अन्योन्य मिल जाते हैं अर्थात् स्वाभाविक संबंध उनमें नहीं है. उदकादि द्रव्यसे ही उनका परस्पर संबंध होता है. उसी प्रकार कार्यसही स्वजनोंके साथ संबंध है, BARMERAPATANAMATKAR तं च कार्यकृते संबंध स्पष्टयत्युत्तरगाथा माया पोसेइ सूर्य आधारो मे भबिस्सदि इमोति । पोसेवि सुदो मादं गम्भे धरिओ इमाएत्ति ॥ १७६० ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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