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________________ दूताराधना 7463 मूला - अजेता अत्रेतारः । परलोके गच्छतः कस्यचित्पश्रागामिनो न किने कायेत इत्यर्थः । भवतस्त्विथः । दायजात अर्थ-बांधव, धन, शरीर, पुत्र, स्त्री, वगैरह सम्बन्त्रीजन परलोक यात्रा करनेवाले प्राणी के साथ आते नहीं है- सुन्दर परिग्रहों पर इस जीवका समस्य रहता है और परलोकमें भी इनको ले जानेकी उत्कण्ठा उसके मन में उत्पन्न होती हैं परन्तु वे उसके साथ नहीं जाते हैं अर्थात् यह मोही जीव भी उनको ले जानेका सामर्थ्य अपने में नहीं रख सकता है. ऐसी एकत्वभावना भानी चाहिए. लोगबंधवा ते नियया पण परस्स होंति लोगस्स । तह चैव धणं देहो संगा सयणासणादीयं || १७५१ ॥ स्वकीयं परकीयं न विद्यते भुवनत्रये ॥ नैकस्यादाट्यमानस्य परमाणोरिवांशिनः ।। १८१८ ।। विजयोदया--रडलोगबंधवा स्मिसेच जन्मनि बांधवाः । परस्स लोगस्स ण णीयया होंति अन्यस्य जन्मनो नवंधवो भवंति । तह व बांधवाश्व धनं देहो संगा यणासणादी य धनं शरीरं शयनासनादयश्च परिश्रद्दा इव लोके एव न परजन्मनि उपकारका भवंति । एवं हि ते बांधवाः परिग्रहाच लढाया इति ग्रहीतुं शक्यते यद्यनपायितया उपकारिणः स्युः । इह जन्मन्येव ये प्रयति ते परलोकं गच्छतमनुसरतीति का प्रत्याशा || मूलारा-वध क्षेत्र बांधत्रा इवैविनादयोऽपि नामुत्रोपकारकाः स्युरित्वर्थः ॥ अर्थ-लोकमें अपने हैं इहलोकसम्बन्धी ही है. परलोकमें अर्थात् अन्यजन्म में वे अपने नहीं माने जाते हैं. इनके समान धन, शरीर, परिग्रह - शयनामनादिक परिग्रह भी हह लोफक ही समझाए परलोक में इनसे सहाय होगा ऐसा संकल्प मनसे हटाना चाहिए. इसलिए बांधव और परिग्रह सहायक नहीं है ऐसा समझना चाहिए. इस जन्ममें भी इस प्राणीका सम्बन्ध में बांधवादिक छोड़ देते हैं ऐना अनुभव आता है तो परलोक में जीत्र के साथ ये आयेंगे ऐसी आशा रखना क्या अज्ञानताका खेल नहीं है आश्वासः ७ १५.७२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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