SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना आश्व विज्जोसहमंतबलं बलवीरिय अस्सहत्थिरह जोहा ॥ सामादिउवाया वा ण होति कम्मोदए सरणं ॥ १७३९ ॥ न योधा रथहस्ताश्चा विदामंत्रौषधादयः॥ सामादयोऽपि चोपायाः पान्ति कमादयेऽङ्गिनाम् ॥ १८०५ ॥ विजयोदया-विज्लामतोसधिबलबीरियं विद्या स्वाहाकारांता तद्रहितता मंत्रस्य वीर्यमात्मनः शक्त्यतिशयः। यलमाहारच्यायाम शरीरस्य दा, अनीकर्षधः। सामभेददण्डोपप्रदानाथाच देतवा न शरणं ॥ दुष्कृतपाकोद्रेकनिराकरणविचारमंत्रादीनामपि माहात्म्यप्रतिघातमनुसंधत्ते-- मूलारा-बल आहारव्यायामादिज देहदाव्यं । णीया बांधवाः। अयं जिसके अंतर्म महाकार है वह विद्या है. मंत्र स्वाहाकारसे रहित होता है.)मंत्रकी शक्तिको वीर्य कहते हैं. शरीरम आहार और व्यायाम करनेसे जो दृढता उत्पन्न होती है उसको बल कहते हैं. ये पदार्थ कर्मके उदयसे आत्माका रक्षण करने में असमर्थ है. पोहे, हाथी, स्थ, योद्धागण, साम दंडादिक उपाय, इनका भी सामर्थ्य कर्मोदय आनेपर न होता है. कर्म सबसे बलवान है. जह आइश्चमुर्देत कोई वारंतउ जगे णस्थि ॥ तह कम्ममुदीरत कोई वारेंतउ जगे णस्थि ॥ १७४० ।। केनेहादीयमानानां कर्मणां ज्योतिषामिव ।। निषेधः शक्यते कर्तुं स्वकीये समये सति ।। १८०६ ।। विजयोदया-जद्द आपच्चमुदतं यथा विनमणिमुदयावलचूडामणितामुपयातं न निवारयति कचित्तथा समधिगतसहकारिकारणं कर्म न निभास्त समर्थः ।। किंबहुनामूलारा-आइच्चं आदित्यं । उदीरतं उदयावलिकाप्रवेशोद्यनं । अर्थ-जैसे उदयाचल पर आनेवाले सूर्यको कोई रोक नहीं सकता वैसे सहकारी कारण मिलनेपर उदय में आये हुए कर्मको कोई भी जीव रोक नहीं सकता. १५६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy