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मूलारावना
आभासः
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आलंबणं च चायण पुष्छण परिवडणाणुपेहाओ । धम्मरस तेण अविसुद्धाओ मवाणुपहाओ ॥ १७१०॥ षाचनाप्रज्ञानाम्नायानुपेक्षाधर्मदेशनाः॥
भवत्यालंबन साधोर्धय॑ध्यान चिकीर्षतः ।। १७७७ ।। विजयोदया-आलंबनप्रतिपादनायोत्तरगाथा । आलंबणं च आथयश्च करस धम्मस्स धर्मध्यानस्य, शायण पुच्छण परिबट्टणागुपटाउ, पाचना प्रश्नः परिवर्तनमनुप्रक्षेति स्वाध्यायविकल्पाः । वाचनादिस्वाध्यायाभावे यनुयाथा रम्यज्ञानमेव नास्तीति ध्यानाभावः । सति स्वाध्याय भवनि भान विचलं ध्यानसंशितमित्यालंघनता स्वाध्यायस्य । तेषण, तेन धर्मेण ध्यानेनाविरुद्धासब्यागुपदाउ, मान प्रक्षाः पककत्राधये वृत्तेविरोधः । अनित्यतादिवस्तुस्वभावानुप्रक्षा मनुप्रेक्षासावा वनं ध्यानमिति । एतेनानुप्रेक्षाया ध्यानेऽन्तःपातित्यमाचक्षाणनानुपेक्षोपन्यास पीजाधानं कृतम् ॥
धर्मस्याश्रयमाह
मूलारा--आलंवर्ण पाचनादिस्वाध्यायाभावे वस्तुयाथात्म्यज्ञानमेव नास्तीति ध्यानाभावः । सति स्वाध्याये भवति ज्ञानमविचलं ध्यानसंज्ञितमित्यालम्बनता वाचनादेधम्म प्रति । परियट्टण पाठगुणनं । अणुपेहा अर्थचिंतनं । तेणधर्मेण । अविरुद्धाओ अनित्यत्यादिवस्तुस्वभावानुप्रेक्षणमाश्रित्य तत्प्रवृत्तस्तदालंकनमनित्यायनुप्रेक्षाः संप्रेक्ष्याः ।।
धर्मध्यानके आधारभूत कारण-- अर्थ-वाचना, प्रच्छना, अनुप्रक्षा, आम्नाय और परिवर्तन ये स्वाध्यायक भेद है. ये भेद धर्मध्यानके आधार भी हैं. वाचनादिक स्वाध्यायक अभावमें वस्तुका यथार्थ ज्ञान ही नहीं होता है. ज्ञानके अभावमें धर्मध्यान नही होता है अतः स्वाध्याय धर्मका अचलंबन है. स्वाध्यायसे जो निश्चलज्ञान प्राप्त होता है उसको ध्यान कहते हैं. इस धर्मध्यानके साथ अनुप्रेक्षाओंका अबिरोध है. वस्तुके अनित्यादिधाका चार विचार करना यह अनुप्रेक्षाका लक्षण है. ये अनुप्रधाए ध्यानके लिये आधार हैं इसलिप ध्यानमें इनका अन्तभीय होता है. इसीलिय ग्रंवार आगे अनुप्रेक्षाओंका सविस्तर वर्णन करेंगे. पूर्वोक्तान धर्मस्य चतुरो भेदान् व्यावष्ट चतसूभिर्गाथाभिः । तत्रासावित्रयं निरूपयत्ति
पंचव अस्थिकायां छज्जीवणिकाए दब्बमणे य॥ आणामन्भे भावे आणाविचएण विचिणादि ॥ १७११ ॥
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