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________________ मृलाराधना आधार विजयोदया-धम्मस्स लपवणं से,से तस्य। धम्मस्स धर्मस्य ध्यानस्य । लक्खणं लक्षणं । लक्ष्यत धम्य ध्याने येन तलक्षण । अज्जवलहुगत्तमद्दमुपदेसा आकष्टानद्वयरम्जुबत्तनुधकुटिलताविरह आर्जवं । लघुगत लघुता निस्संगता झाल्यावविधाभिमानामाचो मादव । उपेत्य जिनमन देशनं कथनमुपदेशः हितोपदेश रति यावत् ।। आजवादिभिः कार्यलेश्यते धर्मध्यानमिति आर्जवादिकः लक्षण । न वातरोटे आर्जवादिकं संपादयतः धदार्जवादिकं परिणाममात्मनः करोति तद्धय॑ध्याननिति लक्षणभावः अभवा भाजवादिपरिणामसद्भाव एच धर्यध्यान प्रवर्तते नासत्यार्जवादी । नहि मानमायालोभकयायाविष्ठो धर्म प्रयतते, तेनार्जधादिकं कारणं तेन लक्ष्यते धर्यमिति लक्षणतार्जवादीनाम् ॥ धर्भध्यानलिंगम याम्यनि--- मूलारा--लक्षणं को गर्म या कम भूरोन कारणवेन या सापादिना हत्तस्य चिन्ह । दे ते । प्रसिद्धाः । लहुगत्त निःसंगत्वं । उपदेसणा य सुत्ते जिनमतोपदेशे। च निसम्पजा स्वभावोत्था। अन्ये तु उक्लेसणो सुत्ने इति पठित्वा उपदेशे आशायां तत्रैव रुचय इत्यर्थमाहुः ।। धर्मध्यानका लक्षण अर्थ-जिससे धर्मध्यानका परिज्ञान होता है यह धर्मध्यानका लक्षण समझना चाहिए. आर्जव, लघुत्व, मार्दव, और उपदेश ये इसके लक्षण हैं. टोरीके दोनों छोर पकहकर खीचनेसे वह सीधी होती है, उसमें वक्रता नहीं रहती है वैसे कुटिलता अर्थात् कपटका अभाव होना यह आर्जब नामक स्वभाव है. निःसंगता अर्थात निलोभी स्वभावको लघुत्व कहते हैं. जातिका गर्व, कुलगर्व इत्यादि आठ प्रकारके गोंका अभाव होना इसको मार्दव कहते हैं. इन गुणोंसे युक्त होकर उपदेश करना यह उपदेश नामक गुण है. इसको हितोपदेश भी कहते हैं. आर्जबादिक कार्योंको देखकर धर्मध्यानको जान सकते है अतः आर्जशदिक धर्मध्यानका लक्षण माने गए हैं. आर्तध्यान और चंद्र ध्यानोंसे आर्जवादिक गुणोंकी प्रानि नहीं होती है. जो आर्जवादिकपरिणाम आत्मा में उत्पन्न करता है उसको धर्मभ्यान कहते हैं. अथवा आर्जवादिक परिणाम होने परही धर्मध्यान उत्पन्न होता है उनके अभावमें नहीं उत्पन्न होता है. मान, माया, लोभादिकपायपरिणत मनुष्य धर्ममें प्रवृत्त नहीं होता है इसलिये आर्जवादिक धर्मध्यानके कारण है अतः धर्मध्यान और आर्जवादिक इनमें लक्ष्यलक्षणभाव सिद्ध होता है. १५४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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