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________________ मूलाराधना १५१० मुलारा - विधी विकल्पेषु । ममत्तदो विजो ममेद सुखसाधनं सदीयमिदमिति वा ममत्वेन त्यक्तः । णिपोसमोहो निस्नेहो, निद्वेषो ममेदभिष्टमिंदे श्रानिष्टमित्यज्ञानरहितश्च । उबेदि तत्तादृश्य चोपगृहीतः क्षपक इति सर्वत्र योज्यं ॥ सन् | अर्थ- संपूर्ण द्रव्य और उनके पर्याय भेदों में यह क्षपक ममतारहित होता है अर्थात् ये द्रव्य और पर्याय मेरे सुखसाधन हैं ऐसा विकल्प उसके मन में नहीं उत्पन्न होता है. वह स्नेह, मोह और द्वेषरहित होकर सर्वत्र समताभाव धारण करता है. संजोगविप्पओगे जहदि इहेसु वा अणि ॥ रदि अरदि उस्सुगतं हरिसं दीणचणं च तहा ॥ १६८५ ॥ प्रियाप्रियपदार्थानां समागमवियोगयोः ॥ विजहीहि त्वमौत्सुक्यं श्रनित्वमरतिं रतिं ।। १७५२ ।। विजयोदयासंयोगे रति विप्रयोगे अरर्ति, इष्टे वस्तुन्युत्कंठां दृष्टयोगे रविं रतिं वर्ष, ष्टविप्रयोगे अरि दीनतां । उस्तुगतं उत्सुकतां च तथा जहति क्षपकः कवचेनोपगृहीतः ॥ मूलारा - रदि इष्टे वस्तुनि संयुज्यमाने, वित्तविश्रांतिमनिष्टें वा वियुज्यमाने | अरवि अनिष्ट संयुज्यमाने इष्टे वा वियुज्यमाने वितानवस्थितिं । उगत्तं इष्टे वस्तुनि उत्कंठां, यदि तन्मे मिलति भद्रकं भवेदिति हृदयोत्कलिकां । इरिस इष्टयोगे रोमांच वचनप्रसादादिनाभिव्यज्यमानमानंद ॥ दीणचणं इष्टवियोगे बैवर्ण्यादिना व्यज्यमानं विषादं । कवचोपगृहीतो जातीति संबंध: । अर्थ - इष्टवस्तुका संयोग होनेसे चिचमें मेम उत्पन्न होता है अथवा अनिष्ट वस्तु अपने से हट जाने से भी प्रेम उत्पन्न होता है. अनिष्ट वस्तुका संयोग होनेसे अथवा इष्टवस्तुका वियोग होनेसे चित्तमें अस्थिरपना उत्पन्न होता है. इष्ट वस्तुमें उत्कंठा अर्थात् यदि इष्ट वस्तु मिलजाय तो बहुत ही अच्छा होगा ऐसा हृदयमें विचार उत्पन्न होना इसको उत्सुकता कहते हैं. इट वस्तुका संयोग होनेसे रोमांच, वचनमें प्रसन्नता इत्यादिसे ओ आनंद उत्पन्न होता है उसको हर्ष कहते हैं इष्ट वस्तुका वियोग होने पर मुखमें विवर्णता उत्पन्न होती है जिससे मनकी भावास 19 १५१०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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