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________________ मूलाराधना मा আম্মা १४९८ को नामास्पसमधस्पार्थे चंच्यते सुखतो बहोः॥ संक्लश क्रियते येन मृतिकालऽपि दुर्षिया ॥ १७३० ।। विजयोक्या-कोणाम अप्पसुक्खस्स कारण को नामापसुस्वनिमित्तं महतोऽनिमित्तमुखात्प्रच्यवतं च मुनि संक्शन स्वर्गापवर्गसुस्वाभ्यां । मूलारा-बहुसुहस्म नितिसुरुवात् । चुकेच प्रत्यधेत ॥ अर्थ-कोनसा प्राणी घोडेसे सुखक लिये बहुत सुस्व जिससे मिलता है ऐसे निमित्तांको छोड देगा. अर्थात् सपक : तूंगम भक्षण कर थोडासा सुग्व अल्पकालतक टिकनवाला प्रात कर लेगा परन्तु इसस तुझको स्वगसुख और मोक्षसखस वंचित रहना पडेगा. आहागभिलापास संक्श परिणाम वृद्धिंगत होत है और उनमें स्वर्गापर्ग सुखसं हाथ धोने पड़ते हैं, - महलि असिधार लेहइ भुंजइ य सो सविसमण्णं ।। जो मरणदेसयाले पच्छेज अकप्पियाहारं ॥ १६६५ ।। मधुलिप्तामसेर्धारा निशाता स लिलिक्षति ।। धभुक्षते विष घोरं संन्यस्तोयोडशनायति ।। १७११ ॥ विजयोदया-महुलितं मधुना लिप्तामसिधारां आस्वादयति । सविषमशनं भुसे यो मरणदेशकाले अयोग्या द्वारप्रार्थनां करोति । प्रत्याख्यातभक्तस्यासन्नमृत्योर्दुरिमोहोदयादाहारमिच्छतो दृष्टांतद्वारेण महांत बोषमावेदयसि-- मूलारा -मरणदेसयाले मरण दिशति ददामि कथयति या मरणदेशः स चासौ कालश्च तस्मिन्मृत्युवेलायामि त्यर्थः । पच्छेन्ज बांछेत् । अकप्पियाहारं अईदाविसाक्षिक प्रत्याख्यातत्वादयोग्यमाहारं ॥ . . अर्थ-जी क्षपक मरण समयमें अयोग्य आहारकी अभिलाषा रखता है वह शहदसे लपेटी हुई तरबारकी धाराको जिह्वासे चाटता है ऐसा समझना चाहिये. अथवा वह षिमित्र दुआ अन्न खाता है ऐसा समझना चाहिये. तात्पर्य यह है कि आहार की अभिलाषासे संक्लेश परिणाम होते हैं जो कि दुर्गती के कारण हैं. १४९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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