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________________ इलाराधना धारण करना चाहिये. यह मेरा मुनिव्रत कर के समान है ऐसा समझकर पूर्वमें जो आहारका स्याग किया था उसका स्मरण करो और धैर्य धारण करो, आश्वास अरहंतसिद्धकेवलि अविउत्ता सव्यसंघसक्खिस्स ॥ पञ्चानापस का जगायो बरं मरणं ॥ १६३३ ॥ साक्षीकृत्य गृहीतस्य पंचापि परमेष्ठिनः संयतस्य वरं मृत्युः प्रत्याख्यानस्य भंगतः ॥ १६९८ ॥ विजयोदया-भरहंत सिद्धकेलि अबिउत्ता सञ्चसंघसविस्म । आईतः, सिज्ञान , केवलिमा, तपस्था देवता सर्व य संघ साक्षित्वेनोपानराब कृतस्य । पचक्खाणस्स मंजणादो प्रत्याख्यानम्य विनाशनात्। घर शोभनं मरणं प्राणपरित्यागः । गबमधि बोध्यमानो दुबारमोहोदयात्प्रत्याख्यानं यदावमुन्नति तदा नदंगमहादोपप्रदर्शनेन प्रत्यवस्थाप्यो गुरुणे त्युपदेष्टुमार - गुलारा- अधिउत्ता तत्स्थानवामिदेवताः । अहंदादयः साक्षिणो यत्र तत्तत्साथि तस्य । पाक्खागरस कदस्स मंजणादो प्रत्याख्याताहार सेवनादित्यर्थः । अर्थ--अरहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सामान्य केवली, दीक्षास्थानस्थित देवता और सर्व संध इनके साक्षीस जो आहार के त्यागका व्रत धारण किया था उसका त्याग करना योग्य नहीं है. उससे तो मरनाही अच्छा है. कथं मरणादशोभनता प्रत्यख्यानभंगमयेत्याशंकायामाचले प्रबंधमुत्तरं प्रत्याख्यानभंजमे दुष्टतां निषेदयितुम् आसादिदा तओ होति तेण ते अप्पमाणकरणेण ॥ राया विव सक्खिकदो विसंव संतेण कज्जम्मि ॥ १६३४ ॥ अप्रमाणयता तेन न्यक्कृताः परमेष्ठिनः ॥ कार्याधिवर्तमानेन साक्षीकृतम्पा इव 11 १६९९ ॥ १४८.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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