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________________ लाराधना १४७६ पूर्व भुक्तं स्वयं द्रव्यं काले न्यायेन तत्स्वयं ॥ अस्य किं दुःखमुत्तमर्णाय यच्छतः ॥ १६२१ ।। विजयोदयापुष्षं सयभुवभुतं पूर्वं स्वयमुपभुक्तं काले पायेण न्यायेन तेलिगं दव्यं तावद्व्यं । को त्रिभो होज धाराणगी को दुःखितो भवेदधर्मणः धण्णिम्मि उत्तमर्णे हरंते स्वं द्वयं हरति ॥ स्वयमादाय भुक्तं यावद्रव्यं तावदेव काले धनिकाय प्रयच्छतो धारणिकस्येष स्वयमर्जितपूर्वस्य पापस्य फलमनुभवतस्तत्त्वज्ञस्य किं दुःखं स्यादिति ज्ञात्वा पूर्वकर्मोदयकृते तद्दुःख सहनमृण मोक्षमिव पश्यन्मास्म दुःखवशेो भूरिति स्मरयितुं प्रागुक्तमेव गाथात्रयमन्वाख्याति--- मूलारा -- स्पष्टम् ॥ अर्थ - जैसे कोई पुरुष योग्य कालमें स्वयं धनिक से धन लेकर उसका उपभोग करता है परंतु जब वह घनिल उससे गोग्लीत होनेपर भून लेता है तब वह पुरुष क्या खिन्न होता है? क्योंकि वह जानता है कि मैनें कर्जरूपसे लिया हुआ धन धनिकको लौटा देना मेरा कर्तव्य है तह चैव सय पुवं कदरस कम्मरस पाककालक्ष्मि ॥ णायाम को नाम दुखिओ होज्ज जाणंता || १६२७ ॥ कृतस्य कर्मणः पूर्वं स्वयं पाकमुपेयुषः ।। विकारं युध्यमानस्य कस्य दुःखायते मनः ।। १६९२ ॥ विजयोदा तह ष तथा चैव । सर्व पृथ्धं कदस्स कम्मस्स आत्मना पूर्व कृतस्य कर्मणः । पाककालम्मि फलदानका न्यायेनागते । को नाम दुषित्रदो होज जाणंतों को नाम दुःखितो भवेज्ज्ञातः ॥ मूलारा स्पष्टम् ॥ अर्थ – उसी प्रकार जो जीवने पूर्वजन्ममें कर्म किये हैं उनका फलदानका काल आवश्य प्राप्त होता ही है. उसके प्राप्त होनेपर कोन ज्ञाता पुरुष दुःखी होगा ? अभिप्राय यह है कि, कर्म जब फल देने लगेगा उस समय उसका शान्त परिणामोंसे अनुभव करना चाहिये. आश्वासः १.४७६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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