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________________ गलाराधना च्यवनसमयसमुत्थं दुःखमनुस्मारयतिमुलारा--अवसस्स गत्यंतरनिर्वतककर्मपरतंत्रस्य । अर्थ-जर मृत्यु के पाश गलेमें आ पडते हैं तब दिव्य भोग, देवांगना, और स्वर्गवास का त्याग करते समय जो तुझको दुःख हुआ था. हे क्षषक तू उसे स्मरण कर. १४६० जं गम्भवासकुणिमं कुणिमाहार छुहादिदुक्खं च॥ चितंतगस्स यं सुचि सुहिदयस्त दुक्खं चयणकाले ॥ १६.१ ॥ पूर्वमवाजितदातजातं । उत्पन्नं त्रिदशत्वमशस्तम् ॥ दुःखमसह्यमपारमवाप्तम् । चिंतय भद्र विमुच्य विषादम् ॥ १६६१ ॥ इति देवगतिः ॥ विजयोत्या-जं गम्भवासकुणिम यगर्भधासकुचितं । कुणिमाहारं कुथिताहारं । क्षुधादिषुःखं च । चितंतगस्स चिंतयनः । सुचिसुहिवयस्ल शुधः सुस्वितस्य । जं एक्लं वयपाकाले यः चयणकाले स्वर्गाच्ययनकाले । मूलाग-कुणिमं कुथितं । अशुचि शुक्रातवादि । सुचिसहिदयस्स देवत्वे शुचे:सुखितस्य सतः । वृतम् हुस्कल्पद्रुम कंपभूषणमणिविमांद्यभूषामलसम्लान्यावरणापरागविभवच्छायाप्रमालावताम् । रूढप्रौढशुरार्चिषां दिविषद षण्मासशेषायुषाम् ॥ तदादुख प्रश्यते प्रमित्विव सुन श्वऽपि यश्रेष्यते ।। देवगति दुखानुचिंतनम् ॥ अर्थ-आयुष्यकी समाप्ति समय में अब यहांसे आयकर मेरेको माताके दुर्गंध गर्भमै रहना पडेगा, दुर्गध पदार्थोंका गर्भावस्थामें आहार लेना पडेगा और क्षुधा, प्यास वगैरह दुःखोंसें मेरे को पीडा होगी. मैं इस देवपर्यायमें सुखी और पवित्र हूं परंतु अब क्या करूं यह आगामी परिस्थिति कैसे टल सकती है ऐसा विचार आनेपर जो बुःख तुमको प्राप्त हुआ था उसका हे क्षपक तू मनमें विचार कर. १४६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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