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________________ मूलाराधना आश्वासः २४४९ उनको भय उत्पन्न होता है. अतः उनको कहां भी निर्भयता का अनुभव आता ही नहीं. विचारे किसी प्रकारसे अपने दिन व्यतीत करते है. २५ हाथी वगैरह प्राणिओंको अंकुशादिकके आघातोंसे दुःख भोगना पडता है. छडी वगैरहका आघात घोडे सहन करते हैं. बैल भैस वगैरह पशु चाबुक वगैरदका प्रहार सहन करते हैं. और आमरण मनुष्योंके वश होकर उनको कार्य करन पडते है. २६ जो मनुष्य बुद्धिमान है वे इन दुःखों का विचार कर विरक्त होते हैं ऐसे मनुष्य इतर प्राणिओंको दुःख देनका कार्य नहीं कर सकते है. २७ बहुतसे प्राणी दयानिके वश होकर मरते हैं, कोई जलप्रवाहमें बहते वहते इहलोककी यात्रा पूर्ण करते हैं. कोई हरिण, पक्षी, सर्प, और तज्जातीय पहुत प्राणी इसी प्रकार मृत्युवश होते हैं, ताणतासणबंधणवाहणलंछणविहेडणं दमणं ॥ कष्णच्छेदणणासावेहणिलं छणं चेव ॥ १५८२ ।। सवा परवशीभूताश्चतुर्धा प्रसकाायिकाः ॥ दुःख पहुचि, वीना लभन्ते चिरमुल्यणम् ।। १६४४ ॥ ताइन वाहने बंधने त्रासने नासिकातोदने कर्णयोः कर्तने ॥ लांछने दाहने दोहने हंडने पीडने मईने हिंसने शातने ॥ १६४५ ॥ षिजयोदया-तरहणातासण ताडनवासनबंधनलांछनयाहनविडनकर्णछेवननसिकावेधनयीजचिनाशनानि ॥ मूलारा ताडण यष्टयादिभिरापातः । तासक त्रासनं भयापादनं । बंधण · इष्टगतिनिरोधाय रज्ज्वादिभियंत्रण बाहण भाराकांत्या देशांतरनयनं । लंछण शंखपद्माधाकारेण दाहं । विहेडणं कदर्थनं । दमणं कर्मप्रयोगाय हमच्छिमामहणं । दंडन वा। जिलचर्य वृषणनिष्कर्षणम् । अर्थ-लाठी वगैरहसे पीटना, भय दिखाना, दोरी वगैरहसे बांधना, बोशा लादकर देशांतरम ले जाना, १५४९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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