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________________ भूलाराधना मुष्टिः । मुद्राहस्तैनारकर्यदस्यत कुट्टितो, यच्च मुसुंदिस्त मुतरां चूर्णितस्त्वं तकियेति संषेधः ।। जं चासि यचासि । खंडाखटि कदो खंड खंडं कृतः । जय नारका: Maxim आश्वासा अर्थ-नरको मुद्दा, भूशुद्धी बगैरह आयुधाद्वारा तुम अनेक नारकियों द्वारा चूर्ण किये गये थे, और अनेक नारकिओने तेरे अनेक बार एकडे भी किये थे. उन नुःखोका तू स्मरण कर.. १-२ अनुकूल क्रिया करना, और बोलना, नम्र स्वभाव, सुख स्वभाव, लज्जा, दया, प्रसन्नता, दान, देना, इंद्रिय दमन करना, विनय, क्षमा इत्यादिक जो उत्तम गुण मनुष्योंमें होते हैं वे जंगलमें जैसे मनुष्य दुर्लभ होते हैं वैसे नारकियोंमे बुर्लभ होते हैं. ३-८ इस जगतमें शत्रु, मित्र और उदासीन ऐस तीन भेद है परंतु नरकमें मित्र और उदासीन ये भेद है ही नहीं किंतु सचही नारकी जीव आपसमें शत्रुपना ही धारण करते हैं. गण, चक्र, नाराष, कराँत, नख, गदा मुशल, शूल. पाश, पाषाण, पटिश, मृठ, लाठी, मट्टीके देले, कील, शंकुनामक आयुध, याणविशेष, तरवार, छुरी भाला, दंद तोमर इत्यादि अनेक आयुधोंसे नारकी जीव क्रोधसे संतप्त होकर परस्परमें लहा करते है. नरक भूमीका भी ऐसा स्वभाव है कि उपयुक्त शस्त्र स्वयं उत्पन्न होते है. नारकी भी अपनी विक्रियासे ऐसे शस्त्र उत्पथ करते हैं. विभंगज्ञानसे भी पूर्व रोका स्मरण कर वे नारकी अन्योन्य को मारते हैं, छेदते हैं भिन्न करते हैं. भक्षण करते हैं. दु:ख देते है. णणोंसे जखमी करते है. प्रहार करते है. ९-१० कोई कोई दृष्ट पापी नारकी कुत्ता, सियाल, मेडिया, चाप, गीध इत्पादि माणिओंका रूप धारण कर आपसमें लडते है कोई.२ | नारकी लकडी. और पर्वत बनकर अन्य नारकियोंको ऊपर गिर पड़ते हैं. अर्थात् शूलके अग्रभागपर चडाय हुए नारकियोके शरीरपर वे गिर पड़ते हैं। कितनेक नारकी जीव पानी होफर लाते हैं. वायु होकर उडाते है.अग्नि होकर जलाते हैं परंतु परस्परपर वे दया नहीं करते हैं १२-१५ अरे दास तूं यहां ठहर में तेरको मारूगा, तूं कहाँ भाग जाता है, महामोहसे तूं छिपना चाहता है परंतु मैं तेरे लिये मृत्यु होकर आया हूं. ये नारकी छेदन कर, IAS भदन कर, पीहा कर, खचि, रोक, जलाव, बांध, घूर्णकर, हकल, मार, प्राणले इत्यादि अशुभ मापण आपसमें पोलते हैं. १४३८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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