________________
मूलागपना
आश्वासः
अर्थ--काले लोहसे बनाये मंडप में बहुतसी तपाये लोहकी प्रतिमायें रहती हैं. तुमको उनसे बलात्कारसे आलिंगन करवाते हैं। तब जो दुःख तुमको उत्पन्न होता था उसको तुम ध्यानमें लाओ तथा धार, अग्नितत और कडुआ रस तुमको पिलाते थे उसका भी तुम स्मरण करो.
जं खाविओसि अवसो लोहंगारे य पाजलते तं ।। कंडुसु जंशिरको जसिवलीए सलिओ सि । ५५७७ ॥ दुःस्पश्यं खाद्यमानो यल्लोहभंगारसंचयम् ॥
पच्यमानः कंदकासु मंडका इव रंधितः ।। १६२५ ॥ विजयोदया-जं खाधियोसि यत्स्वादितोऽसि अयशोऽवशः । बलाधवविद्यारिताननः | लोहगारे य पज्जलंते तं लोहांगाराम्प्रज्वलतः त्वं । कंडसुज सि रहो कंदुकासु यम्मकाघ पकः ॥
मूलारा-खाविदो खादितः । अबसो बालाचत्रविदारितमुखतः । लोइंगारे लोहमयांगाराम् । तं वंदसु मंडक पचनासु स्वेदनिकासु । रखो मंडक इव पकः । कयल्लीए कवल्या फटाहिकायामित्यर्थः॥
अर्थ-उस नरक हे क्षपक तुमको बलात्कारसे यंत्र के द्वारा मुख फाटकर लोडेके जलते अंगार खिलाये थे. और तुमको मांडेके समान कढाईमें तलाया था. उसका तुम विचार करो.
कुट्टाकुट्टि चुग्णाचुर्णिण मुग्गरमुसुंदिहत्थेहि ॥ जं वि सखंडो खंडिं कओ तुम जणसमूहेण ॥ १५७१ ।। चर्णितः कुहिताश्छिन्नो यन्मुद्गरमुसडिभिः ।
बहुशः खंडितो लोकैर्यच्छभ्रस्थौरतस्ततः ॥ १६३० ॥ ___विजयोदया-कुटाकुट्टि बड्डशो यत्कृतिश्चूर्णितः मुहरमुसंडिहस्तः, यर जनसमूहेन भवान् असकृत्वरितस्तदंतःकरणे कुरु॥
अनुवृत्तिक्रिया भाषा सन्नतिः सुनाशीलता॥