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________________ मूलाराधना आश्वासः मूलारा-गाढापहारविद्रो नितरामायुधैर्विद्धः । पूइंगिलियाईहिं स्थूलमस्तककृष्णकीटिकाभिः । चिलादपुत्तो चिला तपुत्रो मुनिः॥ अर्थ-तीच शसुमहार होनेसे जो जखमी दुये थे और जिनका मस्तक बदा है ऐसी काली काली चींटीओने खाकर जिनका शरीर चालनीके समान छिद्रमय किया था एस चिलातावनामक मुनि उत्समार्थ को प्राप्त हो गये. दंडो जउणावंकण लिला कंडेहिं परिगो नि तं बयणमधियासिय. पडिवण्णो उत्तम अहं॥ १५ ॥ यमुनावक्रनिक्षिप्तःशरपूरितविग्रहः॥ अध्यास्य वनांचंडः स्वार्थ शिश्राय धीरधीः ॥ १६१४ ॥ विजयोदयावंडो दंडनामको यतिः । अमुणायकेण यमुनावकसंक्षितन । तिक्सकडेहि तीक्ष्णः शरैः पूरितागोऽपि रस्मत्रय समाराधयति स्म। मूलारा--धण्यो धन्यो नाम मुनिः । वंडो इत्यन्ये । जमुणावंकेण यमुनावक्रनाम्ना राझा ॥ अर्थ-दंड नामक मुनिराजके ऊपर यमुनायक नामक दृष्टमनुष्यने बाणोंकी वृष्टि करके उनका सर्व शरीर प्रणयुक्त कर दिया तो भी उस मुनिराजन रत्नत्रयकी आराधना की ही. अभिणंदणादिया पंचसया णग्ररम्मि कुंभकारकडे । आराधणं पवण्याा पीलिज्जता वि यंतेण ॥ १५५५ ।। यंत्रण पीज्यमानांगाः प्राप्ताः पंचशतपमाः ॥ कुंभकारकटे स्वार्थमभिनंदनपूर्वगाः ॥ १६१५॥ विजयोन्या-अभिणदणादिगा अभिनंदनप्रभृतयः पंचशतसंख्याः. कुंभकारकटे नगरे यण पीज्यमाना अन्याराधनं प्राप्ताः | मूलारा-कुंभकारकडे कुंभकारकटसंशे ।। . १४२५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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