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प्रकारावना
आधासा
अर्थ-सफडो कपट प्रयोग करने पर भी और बेमालूम कपट प्रयोग करने पर भी पुण्यवान मनुष्यसे मिम मनुष्पको अर्थात् पापी मनुष्यको धन प्राप्त नहीं होता है. तात्पर्प-कपट करनेसे धन प्राप्ति होती नहीं रह पुण्यसे ही मिलता है.
इह य परत्तय लोए दोसे बहुए य आवहइ माया ॥ इदि अप्पणो गणित्ता परिहरिदब्वा हवइ माया ॥ १४३१॥ वितरति विपुला मिनिधरित्री बहुविधमसुखं दुरितसवित्री ॥ इयमिति निहता विपुलमनस्क ऋजुगुणपविना विमलयशस्कैः।। १४९२ ।।
इति मापानिर्जयः ।। विजयोदया-नाय परत य इहपरलोकयोबहन्दोपानापति माया । इति आत्मनि निरूप्य परिहर्तव्य भवति माया।
मूलारा--स्पष्टम् । मायानिर्जयः ।। अर्थ-इइपरभवमें माया अनेक दोष उत्पन्न होते हैं एसा जानकर मायाका त्याग करना चाहिये.
लोभे कए वि अत्थो ण होइ पुरिसस्न अपडिभोगस्स ॥ अकएवि हवदि लोभे अत्थो पडिभोगवंतस्स ॥ १५३५ ॥ संपचते सपुण्यस्य खयमेत्यान्पतो धनम् ॥
हस्तप्राप्तमपि क्षिप्रं विपुण्यस्य पलायते ॥ १४९३ ॥ विजयोदया-लोभे कई लोमे कतेप्यों न भवति पुरुषस्य अपुण्यस्प । अफतेऽपि लोभे पुण्यवतः । ततः मर्यासक्तिरर्थलामे ममन निमित्तमपितु पुण्यामिस्यनया खिशया लोभो शिराकार्य।।
लोभजयोपार्य गाथात्रयेणाह
मूलारा-पडिभोगवंतास पुण्यवतः । अर्थासक्तिनार्थलाभानिमित्तमपि तु पुराकृतं पुण्यमित्यनया तिया शौचमनुबनिन् लोभ निराकर्यादितिभावः ।।
पापा