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________________ EMENT मूलाराधना आधा १३५५ मानके प्रतिपक्ष भृत परिणामोंका वर्षान करते है अर्थ-मैं इस संसार में अनंतवार नीचावस्थामें उत्पन्न हुआ हूं. उच्चत्व और नीचस्व ये दो अवस्थायें नित्य नहीं हैं. कुछ काल रहकर नष्ट होती है. ज्ञान, कुल, रूप, संपत्ति, प्रभुत्व ये अनेकवार इस जीवको प्राप्त हुए हैं. ये प्राप्त होकर भी पुनरपि नष्ट हो चुके हैं. और पुनः नीचत्त्व प्राप्त हुआ है. अतः अभिमान करना फिजूल है. अधिगेसु बहस संतेसु ममादो एत्थ को महं भाणो || को विभओ वि बहुसो पचे पुबम्मि उच्चत्ते ॥ १४२८ ॥ - परषु विद्यमानपु किं दुग्नमधिकघु मे ॥ योनिहीनेष्यहकारः संसारे परिवतिनि ॥ १४८५ ।। विजयोदया-स्पष्टा॥ मूलारा--ममादो मत्सकाशान् । विभओ हर्षः ।। अर्थ-कुल, रूप, संपत्ति इत्यादिक बातोंमें मरसेभी अधिक श्रेष्ठ लोक जगतमें हैं अतः इसमें मेरा अभिमान करना व्यर्थ है. तथा ऐसा उच्चत्य मेरेको पूर्वकाल में अनेक वार प्राप्त हुआ था इसलिए इसमें आश्चर्य चकित होना भी मेरे लिए अयोग्य है. उत्तरगाथा जो अवमाणणकरणं दोस परिहर णिच्चमाउस्तो॥ सो णाम होदि माणी ण दु गुणचचेण माणेण ॥ १४२९ ॥ समानी कुरुते दोषमपमानकर न यः॥ न कुवाणः पुनमोनमपमानविवद्धेकम् ॥ ११८६ ॥ विजयोदया-जो अबमाणणकरणं योऽवमामकरणं दोष परिहरति नित्यमुपयुक्तः स मानी भवति । न तु भवति मानी गुणरिक्तन मानेन । MSReateratoraseas ३५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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