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________________ RTIME BA A मूलाराधना आश्वास १३५२ । *-- A - मोहं मम रोधो भूरियापं कुर्यात समातेकभवदुःखबीज इति चिंतया क्षमा कार्या । अथवा पार्य करेज माई पापं मा कुयो महारोषेणेति नियोज्यम् ॥ ( और भी उपाय कहते हैं अर्थ-जैसे अग्निसे सर्व दण नष्ट होता है जलकर स्वाल होता है ये अतिशय दर्लभ, परभवमें साथ MIL आनेवाला, बड़े कष्टसे प्राप्त किया गया सद्धर्म कोधसे नष्ट होता है. पूर्षाचार्य इस विषय में ऐसा कहसे हैं यह क्रोधरूप अग्नि अज्ञान रूपी इंधनसे उत्पन्न होता है, अपमानवायुस भभक ऊठता है, कठोर वचनरूपी स्फुलिंगसे युक्त है। हिंसा रूपी ज्वालासे युक्त है और अतिशय प्रगट पेसा वैरही इसका धूम है ऐसा यह क्रोधाग्नि मनुष्यके धर्म रूपी बगीचका क्षणाद नाग करता है. मै यदि कोष करूंगा तो मेरेसे पाप होगा. पाप अनेक दुःखोंका बीज है. इस प्रकारका विचार कर मनमें, क्षमा, करना चाहिंग.) उपायांतरमपि यदति पुलवकदमझपावं पत्तं परदुःखकरणजादं मे ॥ रिणमोक्खो मे जादो मे अज्जत्ति य होदि खमिदव्वं ॥ १४९४ ॥ परदुःखक्रियोत्पन्नमुदीर्ण कल्मषं मम ।। ऋणमोक्षोऽधुमा प्राप्तो विज्ञायेति विषयते ।। १५८१ ।। विजयोदया-पुच्चकदमझपाय पापागमद्वारमजानता अमेगापि-प्रमादिना पूर्व कृतं यत्कर्म पाएं परेषां दुःखका रणं नदध निवर्तितं । कणमोक्षोऽथ मम जात इति चिंतयताऽपसारयितव्यो रोषः । मूलारा--पुरुबकः पापासबकारणं जानताऽजानतापि वा प्रमादचता सता यत्रोपार्जितं तदिदं पापमद्योदिनममेति संबंधः ॥ ऋणमोक्खो ऋणमोचनं । अजत्ति अधेति । उक्त घ परदुःखक्रियोत्पन्नमुद्रीण कल्मषं मम ॥ - ऋणमोझोऽधुना प्राप्तो विज्ञायेति विषयते ॥ १३५२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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