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________________ मूलाराधना इंद्रियबाण जब आत्माका घात करनेके लिये उद्युक्त होते हैं तब यति उनका इस प्रकार निवारण करते हैं. अर्थ--ध्यानरूपी बलसे युक्त होकर मुनिराज सम्यग्ज्ञानरूपी आखोंसे देख लेते हैं नंतर धैर्यरूपी डाल हाथमें लेकर इंद्रियरूपी चाणोंका निवारण करते हैं. | आश्वासः १३३७ गंथाडवीचरते कसायविसकंटया पमायमुहा ॥ विधति विसयतिक्खा अधिदिदढोवाणहं पुरिसं ॥ १४०१ ॥ प्रमादवदनाः साधु चरंतं संगकानने ॥ धृत्युपानद्विनिर्मुक्त विध्यन्तीन्द्रियकपटकाः ॥ १४५७ ।। विजयोदया-थाडवीचरंतं परिग्रहयने चरन्त । कगयविपकंटकाः प्रमादमुखा विध्यन्ति विषयैस्तीक्षणा धृतिहढोशनद्रहिन पुरुष । कामविलय गाथानात ..... मुलारा---विसथतिक्खा विषयः क्रोधाद्यालगनभूने बस्तुभिस्तीक्ष्णाः । अधिदिढोवाणहं धृतिप्राणहितारहितं ।। अर्थ—परिग्रहवनमें भ्रमण करनेवाला पुरुष यदि संतोषरूपी दृढ़ जूता नहीं पहनेगा तो कणयरूपी विषयुक्त कांटे विषयोंसे तीक्ष्ण होकर प्रमादरूपी मुहके द्वारा पुरुष को चुभेगेही. संयतमा पुनर वंपरिकरस्य कषायधिषकंटकाः किंचिदपि न कुर्वन्ति इत्याचष्टे सूरिः आवद्धधिदिदढोकाणहरस उवओगदिठिजुत्तस्स ॥. ण करिति किंचि दुक्खं कसायविसकंटया मुणिणो ॥ १४०२ ॥ आबद्धधृत्युपानकमुपयोगविलोचनम् ॥ कषायकण्टकाः साधुन विध्यन्ति मनागपि ॥१४५८॥ विजयोक्या-पावधिदिददोवाणहस्स भाषनधृतिरोपानरकस्य भानोपयोगसहितरीने स्वस्पमपि दुः न कुर्यन्ति कषायबिषर्कटकाः॥ १६८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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