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________________ मूलागधना अर्ध-जहाँ माया रहती है वहां क्रोध, मान और लोभ भी साथ ही रहते हैं. अर्थात् क्रोध, मान और ॥॥ लोभसे जो दोष उत्पन्न होते हैं वे सब मायावानको भी होते हैं. आश्वामा १३२९ Moderate 8 सस्सो य भरधगामस्स सत्तसंबच्छराणि णिस्सेसो ॥ दवो भणदोसेण कुंभकारण रुठेण ॥ १३८८ ॥ समवर्षाणि निम्शेषं कुम्भकारेण कोपिना ।। भस्मितं भरतग्रामशस्य प्राप्तेन वंचनां ॥ १४४२ ।। धर्मपावपनिकर्तनास्त्री जन्मसागरनिपातनकी ॥ दावशोकभपवैरसहाया निंदितं किम करोति न माया ॥ १४५३ ।। इति माया ॥ विजयोवया-सरसो सस्य । भरधगामस्स भरतनामधेयनामस्य सससंबन्छराणि वर्षसप्तक । णिस्लेसो हो निरवशेषं दग्धं । भणदोसण मायादोषेण हेतुना । रुडेण कुंभकारेण रुऐन कुंभकारेण ॥ मायातिगहा ॥ मायामोषमाख्यानेन द्रढयति-- गलारा-सरसो बलजापुंजीकृतं धान्यं । भरधगामस्स भरतनाम्नो मामस्य ।' मायादोपाः ॥ अर्थ- भरतनामक ग्राम सात वर्षतकका समस्त धान्य कुंभकरने मायादोषसे रुष्ट होकर भस्म कर दिया. मायावर्णन समासलोभदोमनाच लोभेणासाघत्ती पाबइ दोसे बहुं कुणदि पावं ॥ जीए अप्पाणं वा लोभेण णरो ण विगणेदि ॥ १३८९ ॥ लोभतो लभते दोघं पातकं कुरुते परम् ॥ जानीते परमात्मानं नीचमुच्चन नष्टधीः ॥ १४४३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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