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________________ SEARISH माराधना आचासः मर्त्यमांसरसासक्तः कांपिल्यनगराधिपः ॥ राज्यभ्रष्टो मृतः प्राप्तो भीमः श्वभ्रमुरुयधाम् ॥ १४०७ ॥ विजयोदया-मानुषमासप्रसक्तः कांपिल्यपुराधिपो भीमो राज्यभ्रो नो मृतः पश्चाबरकमुषयातः ॥ मूलारा-कपिलवदी कापिल्यपुराधिपतिः॥ ( अर्थ---कांपिल्यनगरका राजा भीम मांसभक्षण करने में लुब्ध हुआ था इस मांसासक्तिदोषसे वह राज्यभ्रष्ट होकर मृत्युको प्राप्त हुआ और नरकमें उत्पन्न हुआ.. चोरो वि तह सुवेगो महिलारूवम्मि रत्तदिठ्ठीओ। बिद्धो सरेण अच्छीसु मदो णिरयं च संपत्तो ॥ १३९८ ॥ रुपमास्करोधीनो रामारूपविषधीः ॥ पाणविद्वेक्षणो मृत्वा प्रपेदे नारकी पुरीम् ।। ११०८॥ विजयोक्या-बोरो पिता सुषेगी सुवेगनामधेयौरोपियुषतिरूपाष्टरष्टिः शरैर्षियः क्षणेन मृतो नरकमुपगतः।। मूलारा-सुवेगो सुबेगसंमः । अच्छीसु नेत्रयोः ॥ अर्थ--सुवेग नामका चोर त्रियोंके रूपावलोकनमें मुग्ध होकर बाणोंसे विद्ध होकर तत्काल मरणको प्राप्त हुआ और नरकमें उत्पन्न हुआ. फासिदिएण गोवे सत्ता महदिपिया वि णासके ॥ मारेदूण सपुत्तं धूयाए मारिदा पच्छा ॥ १५५९ ॥ गोपासक्ता सुतं हस्वा नासिक्यनगरे मृता ॥ पापा गृहपतेर्भार्या दुहित्रा मारिता सती ।। १४०९॥ दुःखदाननिपुणा निषेथितास्पर्शरूपरसगंधनिस्वनाः॥ दुर्जना इव विमोह्य मानवं योजयति कुपथे प्रधीयसि ।। १४१०॥ १३११
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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