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'आश्वासः
मूलाराधना
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. कलभो गएण पंकादुद्धरिदो दुत्तरादु बलिएण ॥ सबमेव पुणो के जलतहाए जह अदीदि ॥ १३२१ ।।
उत्तारितः करींद्रेण पंकतः कलभो यथा ॥
स्वयमेव पुनः पंकं प्रयाति जलतृष्णया ॥ १३६९. ।। विजयोत्या-कालभो गजपोतः महति कामे पतितः । गण पंकारियो गजेन गोण पंफादुद्धमो । तुत गतु दुस्तरात् पंकार । बलिष्यतिशययता गजेन, समयेय पुणो पंजह अदीदि. स्वयंमत्र कदमो यथा पंकमुपैति । जलतहाए जलतृष्णया ॥
मुलाग–कलमो बालगजः । उद्धरिदो उधृतः । मुत्त राहु उस्तरा ॥
अर्थ--हाथीका बच्चा बढे कीचड में फसा था उसको शक्तिवान हाथीने बाहर निकाला परंतु पानीकी प्यासस वह फिरभी कीचडमें फसता है वैसे कोड मुनि फिर गृहस्थ होते हैं.
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अग्गिपरिक्खित्तादो सउणो रुखाद उप्पडित्ताणं ।। सयमेव तं दुम सो णीडणिमित्तं जध अदीदि । १३२२ ।। उडीय शाखिनः पक्षी सर्वनो निवेष्टितात् ।।
तत्रय नीडलोभन यथा याति पुनः स्वयम् ।। १३७० ।। विजयोदया- रुपवादो सउणो उम्पहिसाण मादुत्पत्य शकुनिः। कीचम्भूनान् ? अग्मिपरिक्वितादो अमिना समंता पितात् , सयमेव तं दुमं अह अहीदि स्वयमेयासी पक्षी अग्निपरिक्षिप्तममधिगरछनि, पीडणिमित स्थाबासनिमितं ॥
मूलारा-अगिपरिक्षिप्तादो यतिवलयितात् । उम्पडिसाणं उडीय ॥
अर्थ-अग्रिसे धिर हुए का त्यागकर एनरपि अपने घरकी अभिलाषासे जैस पक्षी उसी वृक्षके तरफ जाता है बस कोड मुनि फिर गृहस्थावस्था धारण करते हैं.
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