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________________ आश्वासः मुलाराधना ही निदान करनेवालेकी परिस्थिति होती है. अर्थात निदानकारी मनुष्य किए इए पुण्यसे स्वर्गप्राप्ति कर लेनेपर भी पुनः अधोगतिमें चला जाता है. इसी अभिप्रायको स्पष्ट करते हैं अर्थ-कर्ज लेनेवाला पुरुष धन देकर कैदसे मुक्त होता है और घरमें आकर सुखसे रहने लगता है. परंतु जब पुनः साडुकारको धन चुकानेका काल प्राप्त होता है तब पुनः वह कर्जा लेनेवाला पुरुष कैदमें डाल जाता है. वैसे । दाधान्तिके योजयति तह सामण्णं किच्चा किलेसमुक्कं सुहं वसइ सग्गे ॥ संसारमेव गच्छद तत्तो य चुदो णिदाणकदो || १२८० ॥ संभूदो वि जिंदा देवसुक्ख च चक्कहरसुक्खं ॥ पन्तो तसो य चुदो उधबण्णो णिस्यवासस्मि || १२८१ ॥ इदानीं चरणं कृत्वा सुख भुक्त्यावतिष्ठते ।। त्रिदिवे समये प्राप्त तथा याति पुनर्भवम् ।। १३२५ ।। देवश्चकी सुरवं भुक्त्वा संभूतो हि निदानतः॥ निरंतरं महायुःखं प्राप्तश्च प्रतिवासितम् ॥ १३२५ ।। विजयोत्या-संभूदो वि पिणेण निदानेन संभूतः कश्चित् , देवमुक्त्रं देषसुख , चक्रधरसोक्वं चक्रधरसौख्यं , पत्तो प्राप्तः । तसो य चुदो तस्मात्सुखालाच्युतः , गिरयषासम्मि निरपघासे ।। मूलारा-णिदाणकदो एतत्तपोनुभावेन देवलोको मे भूयादिति निदानं कृतं येनासी ।। भोगनिदानदोषमर्थाच्याननाख्याति मुलारा--समूदो संभूतनामकः कुटुम्बिकपुत्रः । देवसोवं सौधर्मकल्पवासिसुरसुखं । चाधरसोक्खं ब्रह्मदसाख्यद्वादशचक्रवर्तिशर्म ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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