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________________ वारापना आश्वास अर्थ-जैसे कुत्ता रक्तहीन सूखी हट्टी चाटने लगता है. परंतु उसमें रस नहीं होता है. हर्शको चूसते समय उसीके तालुका रक्त निकलने पर वह उसमें सुख समझता है. वैसे कामी पुरुष भी विषयोंमें सुख समझता है, अर्थात् स्त्रीसहवासमें उसका स्वयं वीर्यपतन होता है. और उसमेंही वह सुख समझता है. १२४६ महिलादिभोगस्त्री ' लहदि किंचिवि सुई तथा पुरिसो॥ सो मण्णदे वराओ सगकायपरिम्सभं सुक्खं ॥ १२५६ ॥ नग्नो बाल इचास्वस्थः स्वनन्नव्यक्तजल्पनः । श्वासाकलो जनो नार्या कीशी प्रयत रतिम् ॥ १२५७ ।। आरटंती भराकान्ता दीनामुष्ट्रीमिवाकुलाम् ।। किं सुखं लभते मूतः सेवमानो नितंरिनीम् ॥ १२९८ ।। विभीमरूपाः कुदिलस्वमाया भोगा भुजंगा इव रंध्रसंस्थाः।। ये स्मर्यमाणा जनयन्ति दुःख ते सेविताः कस्य भवन्ति शान्त्यै ॥१२९९। प्रवर्य सौख्यं चितरन्ति दुःख विश्वासमुस्पाय पवंचयति ।। ये पीउपन्त परिचर्यमाणास्ते सन्ति भोगाः परमा द्विषन्तः ॥ १३०० ॥ विजयोदया-महिलाविमोगसेवी स्यादिभोगसेवनोधतः । तथा सो ण किंचि घि सुई लहदि तथा पुरुषो न किंचिदपि सुखं लभते एव । सो परागो सगकाएपरिस्समें सोक्वं मण्णने स बराकः स्वकायधमं सौख्यं मन्यते । अनुभवसिई सुखं कथं नास्तीति शक्यते वक्तुं इत्याशंक्य असत्यपि सुखे सुखशानं जगतो भयति विपर्यस्तं सुखकारणस्पेति पंवति । मूलारा-पष्टम् ॥ अर्थ--स्त्री वगैरहको भोगनेवाला यह कामी पुरुष किंचितभी सुख नहीं प्राप्त करता है. यह दीन पुरुष अपने शरीरपरिश्रममें ही सुखकी कल्पना करता है. स्वीसहवासमें सुखकी प्राप्ति होती है यह बात अनुभव सिद्ध है जसको आप सुखाभाव कैसे कहते हो ?
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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