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________________ मूलाराधना आश विजयोदया-कम कर,। कंडुयमाणो न समर्वयन् । सुहामिमाण करे सुखामिमान करोति । जह दुक्खे यथा दुःखे । तद मेहुण आदीहि तथा मैथनादिषुःगरी रभसालिंगने, अधरदशने, उरस्ताउने नरनिशितैरंगच्छेदने कचा. कर्षणे । उक्तंच नमः प्रेत स्वाविष्टः स्वनानिय शानिय ॥ भ्यासायासपरिथांतः स कामी रमत किल ॥ १ ॥ इति ॥ अनुभवसिद्धू विषयसुखं कथं प्रतिषिध्यते इत्याशंका दृष्टांतपंचकावष्टंभेन निराक गाथाद्वयमाचष्टे-- मुलारा--कंडुयमाणो नरुल्लिखन । मेहुण आदिम्मि रभसालिंगनाधरदशमोरस्ताडनकचाकर्षणतीक्ष्णनखकछेदनादिजन्ये ॥ अर्थ-कन्छु रोगको नखोंसे खुजानेवाला मनुष्य खुजाते समय अपनको सुखी समझता है. वैसे यह जीवभी मैथुनादि दुःखोंसे भी अपनेको सुखी समझता है. गाढ आलिंगन करनेमें, अघरचुंबनमें, वक्षस्थल मर्दनमें, नखोंसे अंगमें व्रण करने में और केशाकर्षणमें अपनेको सुखी समझता है. इस विषय में अन्यग्रंथमें ऐसा कहा है-वह कामी मनुष्य पिशाचके समान नग्न होकर, शब्द करनेवाला, और आयाससे थककर मैथुन सेवन करता है. RATAMATARATALAnaimametARAARAARANAYAMARATHeenARARinuter घोसादकी य जह किमि खंतो मधुरित्ति मण्णदि वराओ ॥ तह दुक्खं वेदंतो मण्णइ सुक्ख जणो कामी ॥ १२५३ ।। सेषमानो नरोनारी दुःखदा मुस्खयां कुधीः ।। मन्यते मधुरां वहीं कृमिघोषातकीमिव ॥ १२९३ ।। विजयोश्या-मोसादकी घोषातकी । किमि कृमिः । खंतो भक्षयन् । जहा मधुरिति यथा मधुरमिति मम्यते घराकः । स तथैष । दुक्ख बेवंतो दुसमनुभवन् । मण्णदि सोक्वं जणो कामी मन्यते कामिजनः सुखं ॥ मूलारा-घोसातकी घोषातकी । खतो भश्यन् अर्थ--घोषातकी नामका कहूआ फल भक्षण करनेवाला कृमि उसको मीठा ही समझता है. वैसे दुखका अनुभव करनेवाला कामी पुरुष दुःखको ही सुख मानता है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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