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________________ पुनरावना आचास मुला-मधुरा व मधुरा इव । मो मध्ये भुजिक्रियायाः । बहुदुक्खभयपउरा भोगसेवया पापं बनतःकानिकानि दुःखानि मे न भविष्यति इति विचित्रदुःखत्रासाकुलाः॥ भोगोंके दोषोंका विचार करनेसे भोगनिदान उत्पन्न नहीं होता है इस विषयका विवेचन अर्थ--भोग किंपाकफलके समान अवसान कटुविपाक है अर्थात् किंपाकफल खाते समय मधुर लगता है परंतु उसका कटु परिणाम होता है अर्थात् अन्तमें उससे प्राणीको अत्यंत दुःख होकर मरणकी प्राप्ति होती है. भोग भी सेवन करते समय मधुर --- आनंददायी मालूम होते हैं परंतु अन्तमें तीन अशुभ कर्मबंधक कारण बनकर चतुर्गतीमें अतिशय दुःखदायक होते है. - - भोगनिदानदोष कथयन्ति भोगणिदाणेण य सामण्णं भोगत्थमेव होइ कदं ॥ साहोलंबो जह अत्थिदो विणेको वि भोगत्थं ॥ १२४२ ॥ भोगार्थमेव चारित्रं निदान सति जायते ।। कर्म कर्मकरस्पब द्रविणार्थविचारणे ॥ १२८३ ।। विजयोन्या--भोगणिदाणण य भोगनिदानन था। सामण श्रामण्यं । भोगन्धमय होइ फदं मोगार्थमेव कृतं न । कर्मक्षयार्थ भवति । भोगनित्राने सति गरायव्याकुलितचित्तस्य प्रत्यकर्मग्रवाहस्वीकृती उद्यतस्य का संयतसा ॥ भोगनिदाने दोष भापतेमूलारा-मोगत्यमेव न कर्मक्षयार्थ । मोगरागाकुलचित्तत्त्वे प्रत्यग्रपापकर्मप्रवाहस्वीकरणाभियोगात् । मूलारामाग साहोलंबो शाखायामवलंबी यस्यासी फलाशुपयोगार्थी यथा वृक्षशाखालास्थितः कश्चित्स्वेष्टस्यानगमनं विनयति तथा श्रमणोऽपीति भावः । अन्यस्त्वाह-- भोगार्थमेय पारिनं निदाने सति जायते ।। कर्म कर्मकरस्येर द्रषिणार्थ विचारणे ॥ भोगनिदानके दोष कहते हैं- . १२३५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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