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________________ BUA मूलाराधना आश्वास १२२४ उचं भवे कुलं नीचो नीचमुचः प्रपद्यते ।। कुलानि संति जीवानां पांधानामिव विश्रमाः ॥ कुलाभिमानका नाश करनेका उपाय कहते हैं अर्थ-स्थान, मान, ऐश्चर्यादि न होनेसे मनुष्य नीच कहलाता है. ऐसा नीच मनुष्य इनकी प्राप्ति । होने पर लोकोंके द्वारा उच्च माना जाता है. जिसके स्थान, मान, ऐश्वर्यादिक बढ गये हैं वह मानव कालान्तरसे । इस मानके दोषसे हीनताको प्राप्त होता है. जैसे प्रयास करनेवाला मनुष्य एक जगहमें ही विश्रांति नहीं लेता है। भिन्नभिन्न स्थानोंका वह आश्रय लेता है वैसे यह जीव भी एक ही कुलमें नहीं रहता है. भिम मित्र कुलोंमें उसको जन्म लेना पडता है. कभी उच्च कुलमें यह जन्म धारण करता है कमी नीचकुलमें उत्पन्न होता है अतः कुलका गवे करना योग्य नहीं है. किं च गर्थो हात्मनो घृद्धिं परस्य वा हानि युरूयो संक्षेपते तस्य युक्तोऽइंकारः न चास्य वृद्धिहानी स्त इति कथयति उच्चासु वणीचासु व जोणीसू ण तस्स अस्थि जीवरस ॥ वढी वा हाणी वा सव्वत्थ वि तित्तिओ चेव ॥ १२२९ ॥ हानिधद्धी प्रजायेते नोचोच्चासुन योनिषु ।। सर्वनोत्पद्यमानस्य जीवस्य सममानता ॥ १२७०॥ विजयोदया- उच्चासुवणीचासु व यत्र स्थित आत्मा शरीरं निष्पादयति तद्योनिशद्वनोच्यते । न तस्य उच्चता नीचता या ततः किमुच्यते उच्चासु प णीचासु व इति 1 अयोच्यते-पोनिशद्वेन कुलमेघानोच्यते । नेनायमर्थः । मान्ये कुले गहिते वा उत्पन्नस्य न तस्य जीवस्य वृद्धिा निर्वा सर्वत्र सत्प्रमाण पत्र ज्ञानादिगुणातिशयादेव उत्कृष्टता । निवितगुणः कुलीनोपि न पूज्यते तरामन्यैः । अमान्येपि कुले संभूतो यदि गुणी स्यात् । उक्तं च संसारवासे भ्रमतो हि जंतोन चात्र किंचित्कुलमस्ति नित्यं ॥ स पच नीचोत्तममध्य जातः स्वकर्मवश्यः समुपैति तास्ताः ।। नृपश्च दासः चपनश्च विप्रो दरिद्रवंशव समृद्धवंशः ॥ चोराग्निवावाहितयाचिता च संजायते कर्मवशात्स एन ।। १२२४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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