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________________ मृदावना १२२३ मानके दोष इस प्रकार हैं-मान जीवको नीच कुलमें उत्पन्न करता है, मानसे गुणों की प्राप्ति नहीं होती है. मानी पुरुषका सर्व जन द्वेष करते हैं, उसको रत्नत्रयादिक का लाभ नहीं होता है. इत्यादिक दोष मान कषायमें है. द्रव्यपरिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल परिवर्तन, भवपरिवर्तन और भावपरिवर्तन ऐसे पांच परिवर्तन स्वरूप संसारसे पराङमुख होनेका विचार हमेशा करना चाहिए. इस विचारसे भी मानका घात होता है. जब आत्मा संसारसे परामुख होता है तब अहंकार के साधन का ना होता है की गुपकी प्राप्ति होती हैं. मेरे को जो ज्ञान तप वगैरह गुण प्राप्त हुए हैं वे अन्य पुरुषों को भी प्राप्त होते हैं अतः गर्व करना योग्य नहीं है ऐसा विचार करनेसे मानका नाश होता है. कुलाभिमानीतरासोपायमाचरें णीचो वि होइ उच्च उच्च णीचत्तणं पुण उवेइ ॥ जीवाणं खुकुलाई पधियस्त व चिस्समंताणं ॥ १९६८ ।। उधं भवे कुलं नीचो नीचमुच्चः प्रपद्यते ॥ कुलानि सन्ति जीवानां पांधानामिव विश्रमः ।। १२६९ ।। ! विजयोदयाचा वि होदि स्थानमानैश्वर्याविभितिरोभूतो नीच इत्युच्यते। सोषि होदि भवति । उच्चो तैरेवोन्नतः । स उच्यो अतिशयित स्थानमा नादिकोऽपि नीवत्तणं न्यूनतां । पुन उचेदि पुनः उपेति । जीवानां जीवानां खलु । कुलाई कुलानि कीभूतानां ! विस्समराणं विश्रमतां बहूनां कुलानि कुबटन कुलानित्यता दर्शिता | अनियतकुलस्य कः कुलगयेः । पथिकस्सव पथिकस्य यथा विश्रमस्थानं न नियतमस्ति तद्वदेवास्येति भावः ॥ कुलाभिमाननिरासोपायमाह - मूलारा - णीयो स्थानमानैश्वर्वादिभिस्तिरोभूतः । उचो अतिशथितस्थानानादिकः । कुलाई गोत्राणि स्थानानि च । विस्समंताणं विश्राम्यतां स्थितिकुर्वतां कुलानि जीवानां संपद्यते । यथा पथिकस्य न विश्रामस्थानं नियतमस्ति तथा कुलं जीवस्येति भाषः । अमियत कुलस्य कः कुलगर्भ इति माननिर्जयः । विस्वनत्थाणमिति कचित्पाठः । उक्तं च आश्वासः ૬ १२२३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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