________________
मुलाराधना
आश्वासः
१०४
पापोंसे डरनेवाला, कर्मका उदय इस समय उपस्थित हुवा है ऐसा जानकर उसको सहन करने में असमर्थ होता है,ऐसे संकटोंसे पार पडने का उपाय उसको नहीं दीखता है तो भी पापकार्यसे वह डरता है, आत्माका घात करनेवाले मरणोंसे भययुक्त होता है. उपर्युक्त कारण उपस्थित हो जानेयर अब मेरा कुशल होगा क्या ऐसा वह मनमें विचार करता है-यदि मैं इस उपसर्गके भयमे पीडित हो जाउं तो मेरा संयम नष्ट होगा और मेरा सम्यग्दर्शन भी नष्ट होगा. इस उपसर्गसे जो वेदना हो रही है वह सहन करते समय परिणामोंमे संक्लेश होगा ही. अब मेरी रत्नत्रयाराधना नष्ट होगीन टिकेगी ऐसा जब उमको निश्चय होता हैं उस समय निष्कपट होकर चारित्र और दर्शनमें विशुद्धता धारण कर धैर्ययुक्त होता है. ज्ञानहा सहाय लेकर निदानरहित होता है, अर्हन्तके समीप आलोचना कर के विशुद्ध होता है. निर्मल लेण्याधारी वह पुरूष अपने श्वासोछासका निरोध करता हुवा प्राण त्याग करता है. ऐसे मरणको विप्राणस मरण कहते हैं,
उपयुक्त कारण उपस्थित होनेपर शस्त्रग्रहण करके जो प्राणत्याग किया जाता है वह मृद्धपृष्ठ मरण है.
इस तरह मरणके जितने विकल्प संभनीय थे वे कहे हैं, ऐसे मरयाँस प्राणी प्राणत्याग करते हैं.
प्रायोपगमन मरण, इंगिनी मरण, और भक्तप्रत्याख्यान मरण ऐसे तीन मरणही उत्तम है. पूर्व कालीन महापुरुषोंने इनकी ही प्रवृत्ति चलायी है. हमने संक्षेपसे आगमका अनुसरण करके सतरा प्रकारके मरणका विवेचन किया है.
-
Wione
-
पतषु सप्तदशसु पंच मरणानि इह संक्षेपतो निरूपयिष्यामीति प्रतिशानेन कृता । कानि नानि पंच मरणाति इत्याशंकायां नामनिर्देशार्थ गाथामाह
पंडिदपंडिदमरणं पंडिदयं बालपंडिदं चेव ।। बालमरणं चउत्थं पंचमयं बालबालं च ॥ २६ ॥ पंडितं पंडितादिस्थ पंडितं बालपंडितम् ॥ चतुर्थ मरणं यालं बालयालं च पंचमम् ॥ २१ ।।
-