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________________ मूलाराधना आश्वासः चोरके समान, छिद्र, दरवाजा, किवाह, तट वगैरहका अवलोकन न करे, दाताका आनेका रस्ता, उसका खडे रहनेका स्थान, पळी और जिसमें अब रखा है ऐसे पात्र इनकी शुद्धताके तरफ विशेष लक्ष्य | देना चाहिए. जो अपने बालकको स्तनपान करा रही है और जो गर्भिणी है ऐसी स्त्रियोंका दिया हुआ आहार न लेना चाहिए. रोगी, अतिशयना, नालक, उन्गार, घ. गूग, शाल, भरत शंकायुक्त, अतिशय नजदीक जो खड़ा हुआ है, जो दर खडा हुआ है, एस पुरुषस आहार नहीं लेना चाहिए. लज्जास जिसने अपना मुंह फेर लिया है, जिसने अपना मुंह ढक लिया है, जिसने जाडा अथवा चप्पलपर पांव रखा है, जो उंच जगह पर खड़ा हुआ है. ऐसे मनुष्यका दिया हुआ आहार नहीं लेना चाहिए. टूटी हुई अथवा खंडयुक्त हुई ऐसे पटी के द्वारा दिया हुआ नहीं लेना चाहिए. मांस, मद्य, मक्खन, नही विदारा हुआ फल, मूल, पत्र, अंकुर और कंदका त्याग करना चाहिए. इन पदार्थीका स्पर्श जिसको दुआ है वह अन्न भी त्यागना चाहिए. जिनका रूप, रस, गंध, स्पर्श, चलित हुआ है, जो कुथित हुआ है अर्थात खराब हुआ है, जिसको जंतुओंने स्पर्श किया है ऐसा अन न देना चाहिये, न खाना चाहिये और उसको स्पर्श भी नहीं करना चाहिए. उद्गम, उत्पादन, एषणा दोषोंसे दूषित आहार नहीं खाना चाहिए. नऊ कोटीसे परिशुद्ध आहार ग्रहण करना एषणासमिति है. जो चीज जहां रखना हो, और जो चीज जहांसे उठाना हो वे दोनो पिछीसे स्वच्छ करना योग्य है या नही है. इसका विचार कर नंतर उनको स्वच्छ करना चाहिय. और बह चीज रखनी चाहिये या उठानी चाहिये. इसको आदाननिक्षेपण समिति कहते हैं. ईयासमितिका और मनोगुप्तिका वर्णन पूर्वमें किया है. अधिक स्पष्ट प्रकाशमें देखकर भोजन करना अर्थात् सूर्य प्रकाश में भोजन करना ऐसी अहिंसावतकी पांच भावनायें हैं. द्वितीयव्रतभावना उच्यते कोधभयलोभहस्सपदिण्णा अणुवीचिभासणं चेव ।। विदियरस भावणाओ बदस्त पंचेव ता होति ॥ १२०७ ॥ १२०७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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