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________________ मुलाराधना शश्वास रागो मनोहरे ग्रंथे द्रुषश्चास्त्पमनोहरे ।। रागद्वेषपरित्यागो बरवाम प्रजायने ।। २८८ ।। चिजयोदयारागहषयोः कर्मणां मूलयोनिमित्तं परिग्रहः, परिग्रहत्यागे रागद्वेषौ पव त्यक्तौ भवनः । बाह्यद्रव्यं मनसा स्वीकृत रागद्वेषयोचींजे, तमिलसति सहकारिकारणे न च कर्ममावाद्रागद्वेषत्तिर्यथा सत्यपि मृत्पिडे दंडाद्यनंतरकारणधैकल्ये न घटोत्पत्तिर्यथेति मन्यते ॥ एतदेवाहमूलारा-मणुणे इथे मनसा स्वीकृते सति ॥ अर्थ-इष्ट विपर्योंमें रागभाव उत्पन्न होता है और अनिष्ट विषयों में देष उत्पन्न होता है. परंतु परिग्रह का त्याग करनेसे सग और द्वेष दोनों भी नष्ट होते हैं. रागद्वेष कर्मबंध होने मूल कारण हैं. रागद्वेषसे ही कर्मबंध होता है. परंतु परिग्रहका त्याग करनेसे रागद्वेषणका त्याग होता है. मनमें विचार कर जब जीव वाह्य द्रव्यका अर्थात् बाह्य परिग्रहका स्वीकार करता है तब रागद्वेष उत्पन्न होते हैं. यदि सहकारिकारण न होगा तो केवल कर्ममात्र से रागद्वेष उत्पन्न होते नहीं. यद्यपि मृरिपडसे घट उत्पन्न होता है तथापि दंडादिक कारण नहीं होंगे तो घटकी उत्पत्ति नहीं होती है, कर्मणां निर्जरणोपायः परीषहसहनं । तथा चोक्तं पूर्वोपात्तर्मनिराधे परिपोटरयाः पीपहाः सोढर भवन्ति ग्रंथचेलपाधरणाविक त्यजतेति व्याच सीदण्हदसमसयादियाण दिण्णो परीसहाण उरो सीदादिणिवारणए गंथे णिययं जहतेण ॥ ११७१ ॥ शीतादयोऽखिलाः सम्यग्विषयते परीषहाः ॥ शीतादिवारकं संगं योगिना त्यजता सदा ।। १२०५ ।। विजयोदया-सीदुण्हदसमसयादियाण ननु च सुःखोपनिपाते संलशरद्वितता परीषहजयः । न तु शीतो. ष्णादयो नहि ते आत्मपरिणामाः अनात्मपरिणामाश्च बंधसंवरनिर्जरादीनामुपायो न भवन्ति । योऽनात्मपरिणामो नासौ निर्जराहेतुः यथा पुद्गलगतरूपादयः । अनारमपरिणामाश्च शीतादयः क्षुत्पिपासादयो दुःखहेतवः । ननु दुःखे तत्
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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