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भावा
मूलाराधना ११५.
सोयइ विलबइ कंदइ पढे गंथम्मि होइ वीसण्णो ॥ पज्झादि णिवाइज्जद्द तर उकंठिो होइ । १५५ ॥ श्वसिति रोदिति सीदति वेपते गतवति द्रविण ग्रहिलोपमः ।।
करनिविष्टकपोलतलोधमो मनसि शोचति पूत्कुरुतेभितः ।। ११९४ ।। विजयोदया-सोयदि विलयनि शोचति, विलपति, दति नऐ परिग्रहे विषण्णव भवति । चिंता करोति । पिषत्यंतस्संतापाजलादिक, पते उत्कंठितो भवति ।।
मूलारा- विसष्णो विषण्णो विचेतनो वा। पज्झादि चिंता करोतिः णिशाहजदि पियत्यन्तःसंतापाञ्जलादिकं । अस्त्रेवेनापूर्यत इत्यन्यः॥
अर्थ-परिग्रहका नाश होनेपर शोक करता है, जोरसे रोने लगता है. लोगोंके हृदयमें दया उत्पन होगी ऐसा रोता है. मनमें खिन्न होता है, चिंता करने लगता है. हृदयमें बहुत जलन पैदा होनेसे पानी पिता है, उसके अवयव कांपने लगते हैं और वह उत्कंठित होता है.
डण्झदि अंतो पुरिसो अप्पिए गद्रे सगम्मि गंधम्मि ।। बायावि य अविवप्पइ बुद्धी विय होइ से मूढा ।। ११५६ ॥ अंतरे द्रव्यशोकेन पावकेनेव ताप्यते ॥
बुन्धिर्मदायते याद मुखत्युत्कंठते तराम् ॥ ११९५ ॥ चिजयोदया-उज्झदि दयते अतः पुरुष आत्मीये नऐ परिप्रहे । पागपि नश्यति बुद्धिरपि मंदा भवति ॥ मुलारा- अक्खिप्पदि नश्यति स्खलति वा ।।
अर्थ-परिग्रहका नाश होनेसे मनुष्य मनमें जला करता है उसका वचन भी नष्ट होता है. अर्थात् उसका बोलना भी बंद पडता है उसकी बुद्धि भी मंद होती है.