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________________ मुलाराधना ११४६ अर्थ - जिसके मुहमें मांस हैं ऐसा पक्षी मांसाभिलाषी इतर पक्षिओंके द्वारा खाया जाता है. वैसे परिग्रहवान् धनाढ्य मनुष्य इतर परिग्रहको चाहनेवाले लोगों के द्वारा पीटा जाता हैं मारा जाता है, उसको किसी कोटडी में बंद कर देते हैं. किसीका अपराध नहीं करनेपर भी उसको लोक परिग्रहाभिलाषी बनकर दुःख देते हैं मलपन् ॥ मादुपिदुपुत्तदारेसु बि पुरिसो ण उवयाइ वीसंभं ॥ गंधणिमित्तं जग्गगइ कंक्खतो सव्चरन्तीए ॥। ११४७ ॥ प्रियासी पितृदेहजादी सदापि विश्वासमनादधानः ॥ न त्रायमाणः सकलां त्रियामां प्रयाति निद्रां धनलुब्धबुद्धिः ।। ११८६ ॥ विजयोदया- मादुपिपुलमा रेसु षि विश्वसनीयेष्यपि मात्रादिषु विश्रमं नोपयाति । जागर्ति सर्व रात्रीः मूलारा - स्पष्टम् । अर्थ -- यह मनुष्य परिग्रहों का अभिलाषी होकर सर्व रात्रि में बडबडता हुआ जागता है. माता, पिता, लड़का, पत्नी इन विश्वसनीय लोगों पर भी विश्वास नहीं रखता है. विजयोदयास मशः सदा भवति ॥ मूलाराम सिंगो परवशः || सव्वंपिं संकमाणो गामे-णयरे घरे व रण्णे वा ॥ आधारमणपरो अणप्पवसिओ सदा होइ ॥ ११२८ ॥ अरण्ये नगरे ग्रामे गृहे सर्वत्र शंकितः ॥ आधारान्वेषणाकांक्षी स्वबशो जायते कदा ॥। ११८७ ।। पि संक्रमणों सर्वमपि शेकमा ग्राभे, नगरे, गृहे, अरण्ये या आधारान्वेषणा साधुमसाधुम्बा संक्रमागो धनापहारवत्येन कल्पयन आधाररक्षायुक्तस्थानं । अणपत्र आश्वास 두 ११४३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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