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मूलाराधना
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मूलारा एकमेकेहि अन्योन्यैः कर्तृभिमीरिताः । अन्योन्यतोऽतिभयं जातमित्यन्ये । संजोइय संयोज्य ||
अर्थ -- इस धनके निमित्तसे चार चोरोंको महाभय उत्पन्न हुआ था. अर्थात् इन्होंने मद्य मांस में परस्परोको मालुम न पडेगा इस प्रकारसे विष मिलाया था जिससे मध मांसका भक्षण करके वे लोग मरणको प्राप्त हुए.
संगो महाभयं जं विडिदो सावगेण संतेण ॥
पुत्ते व अत्थे हिदम्मि णिहिदिल्लए साहूं ॥ ११३० ॥ संगो महाभयं यस्माच्छ्रावत्रेण कदर्धितः ॥
विहितेऽपहृते द्रच्ये तनूजने तपोधनः । ११६७ ।।
विजयोश्या - संगो महाभयं परिग्रहो महद्भयं यस्मात् विद्वडिदो बाधितः । सावगेण संतेण श्रावण सता । पुत्रेण चैव पुत्रेणेव । जिहिदिगे अत्थे दिहि साहुं निक्षिप्तेऽर्थे ते साधु ॥
पुनरव्याख्यानमाह्—
मुलारा - विहेडिदो कदर्थितः । पुत्रेण धावकस्यैव गिलिगे गर्तानिभिते ॥
अर्थ - एक श्रावक के पुत्रने अपने पिताका जमीन में गाड़ा हुआ धन हरण कर अन्य स्थानमें रखा थাजब उसको अपना गाडा हुआ वन नहीं प्राप्त हुआ तब उसके मनमें मेरा धन सुनिने लिया होगा ऐसा संशय उत्पा हुआ. क्योंकि मुनिको उसने चातुर्मास में अपने घरमें ही रहने के लिये आवास दियाथा. जब मुनि चातुर्मास समाप्त होनेपर विहार करने लगे तब इस श्रावकने अनेक प्रकारकी कवायें कहकर बाधा दी है. ये कथायें श्रेणिक पुराण में हैं.
दूओ मण विग्घो लोओ हत्थी य तह स रायसूयं || पहियणरो वि य राया सुवणयाररस अक्खाणं ।। ११३१ ।। वरणउलो विज्जो वसा तावस तदेव वृणं ॥ रक्ख सिवण्णीडुंडुदुह मंदज्ज मुणिस्स अक्खाणं ॥ ११३२ ।।
आश्वासः
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