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... - कसनीयतामन रंग ! - आयुष्याः । नाचमानम ॥
विषयमानी जग पद मिगीका भाम. गान, कटाश का मना यहा मनांगजामा बसपा मगम ग्रामर पवनमदयनर का । व स्तुतीक पाय अर्थात धन्य है. साथ ब्रह्मचर्यमहावतका वर्णन पूर्ण हुआ. पंचममहाममिपणायोचम्प्रबंध:
अम्भतरबाहिरए सब्वे गंथे तुमं विवजहि ॥ कदकारिदाणुमोदेहिं कायमणक्यणजोगेहिं ।। १११७ ॥ बाह्यमाभ्यंतरं संगं कृतकारितमोचनैः।
चिमचस्व सदा साधो ! मनोवाकायकर्मभिः ॥५४॥ विजयोदया-अम्भतरवाहिग अपयनराम्बायाश्च । सध्ध गंथे सघान्ग्रंथान् । तुम चिवमादि वर्गय भवान । करकारिदाणमादेहि रुत काशिनुम.मनैः । कावमाययाजोगहि कायम मनसा वाचाया।
एवं ब्रह्मचर्यत्रतं यावर्षमाप्रा अपरिग्रहास्यं पंचम महानतं गाधापंचपल्या प्रचंधेज व्यायर्णपितकामः पयां नैन्यं प्रनि अपक प्रयोजयति--
मुलग- अभंत वाहिया अभालगन्याह्यांत्र । गंधे परिग्रहान । तुम
अब पांचव परिग्रहपरित्याग महावतका आचार्य विस्तारसे निरूपण करत है
अर्थ-द्रवपक! तुम संपूर्ण अनरंग और दिग्ग परिग्रहीका मन, वचन, और शरीरस तथा कृत, कारित और अनुमोदन अर्थात नऊ प्रकार त्याग कंगे
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नत्रामनामनिरपान नवा --
मिछत्तवेदरामा तहेब हामादिया य छदोसा ॥ चत्वारि तह कमाया चउस अभंतरा गंथा ॥ १११८ ॥
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