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________________ - ----- भावास मूलाराधना -- 2.. विजयोदया-पोसन गाथा 1 आहारगद सम्म ॥ आदारो निरूपितः ॥ मुलास-किहेनि-आहारेदूण भुक्त्वा || आहारः ॥ ५॥ अर्थ-पुनः जो नउ दस महिने नक बांति खाकर द्भिगत हुआ है वह अपना संबंधी भी हो तो भी । वह जाकिः पारसग या आदर का प्रकरण समाप्त हुआ. जन्मनिरूपणायोत्तम गाथा असृचिं अपेच्छणिज्ज दुग्गंध मुतसोणियदुवार ॥ वोत्तुं पि लज्जणिज्ज पोट्टमुहं जम्भभूमी से ।। १०२० ॥ शोणितप्रसषद्वारं दुर्गंध जठराननं ।। अवाच्यजन्मभूतस्य लज्जनीयमशीचकम् ॥१०४६ ।। विजयोदया-असुचि अनुत्रि । अपेच्छाणिज्ज अप्रेक्षणीयं । मुग्गंध दुर्गधं । मुत्तसोणियदुवारं मूत्रस्य शोणितस्य च सारं । घोर्नु पि दरणिर्ज पश्तुमपि स्त्रनासा सज्जनीयं । पोहमुह उवरमुख परांगं । जन्मभूमी से जन्मभूमिस्तस्य । मलारा-असुचिमिति-अपेख्नवणीय अद्रष्टव्यं । यो पि कथयितुमपि प्रसिद्धनाम्दा । पोट्टमुह उदरमुख योनिरित्यर्थः । से तस्य नरस्य नरदेहस्य वा । अर्थ--प्राणी की जन्मभूमि जिसको उदरका मुख कहते हैं यह अपवित्र है, देखने लायक नहीं है, वह दुर्गधयुक्त और मुत्र तथा रक्त बहनका द्वार है. उसका नाम लेकर वर्णन करनेसे लज्जा उत्पन्न होती है. जदि दाव विहिंसिज्जइ वत्थीए मुहं परस्स आल ॥ कह सो बिहिसणिज्जो ण होज्ञ सल्लीढपोट्टमुहो ॥ १०२१ ॥ परी पस्तिमुम्बम्पी महद्भिनिद्यते यदि ॥ उदरद्वारसंस्पशी विनियो न तदा कथम् ।। १७ इति जन्म।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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