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________________ मायाम मूलाराधना ९९६ मनसा वचसा शरीरेण परशरीरगोबरब्यापारातिशयं त्यक्तवतः पराविधानात्यागात् दशविधं ब्रह्मचर्य भवतीति वक्तुकामो ब्रह्मभेदमाचष्टे-- इजित्रिस्याभिरालो बहिनियलोणियरससेवा ॥ संसत्तदवसेवा तदिदियालोयणं चेव ॥ ८७९ ॥ विजयोव्यादस्थिविसयामिलासो स्त्रीसधिनो ये इंद्रियाणां विषयास्तासां रूपं, तदीयोऽधररसः तासां वकामचो गंधा, तासां कल गीतं, हासो, मधुर बना, सृस्पर्शश्च तत्र अभिलाषः । आत्मा स्वरूपपरिधानपरिपतिलक्षणं ब्रह्मचर्य वहतीति आत्मा ब्रह्म ततोऽन्यो पामलोचनाशरीरगतो रूपादिपर्यायः सोऽष भण्यतेऽग्रहाशमेव तत्र चर्या नामाभिलाषपरिणतिः । यस्थिविमोक्यो मेहनविकारानिवारण । पणिदरससवा घृण्या. हाररससेवना । संसत्तदवसेवा खीभिः संसक्तानां संवदानां शय्यादीना सेवा तदंगस्पर्शवदेव कामिनां तनुशाप्तव्यस्पर्शोऽपि प्रीति जनयति । तदिदियालोयण चेष तास घरांगावलोकन च ॥ किं तद्दाविधं ब्रह्म यत्परित्यागाचद्विलक्षणं दशप्रकारं ब्रह्मचर्य भवतीति जिज्ञासायामब्रह्मभेदान्दश गाथायेन निर्दिशति मृदारा इस्थिविसयामिलासो स्त्रीणां संबंधिनी ये विषया इंद्रियाणां गोचराः खियाः सुन्दरं रूपं, तधररस स्तत्सुरभिमुखश्वसितादिगंधस्तत्कलगीतहसितमधुरमन्मनवचनतत्कुचादिस्पर्शश्चैषु अभिलायो ग्रहीतुमौत्सुक्यं । बस्विविमोक्खो लिंगविकारकरण । पणिदरससेवा वृष्यद्रव्यरसोपयोगः । संसत्तदवसेवा स्त्रीसेवितशय्यावस्त्रागुपभोगः कामिनीतनुम्पर्शवकामिनां तत्संयुक्तद्रव्यस्पर्शोऽपि हि प्रातिमुत्पादयति । तदिदियालोयणं स्त्रीवरांगनिरीक्षण ॥ मनसे, वचनसे और शरीरसे परशरीरके साथ जिसने प्रवृत्ति करना छोट दिया है ऐसा मुनि दश प्रकारके अब्रह्मका त्याग करता है. तब वह दश प्रकारके ब्रह्मचर्योका पालन कर सकता है. ग्रंधकार अनझके दस प्रकारॉका वर्णन करता है अर्थ-स्त्रीसंबंधी जो इंद्रियों का विषय हैं उनकी अभिलाषा करना अर्थात् उनका सौंदर्य, उनका अधर रस, उनके मुखका गंध, उनका मनोहर गायन, हंसना और मधुर भाषण, तथा उनके शरीरका मृदुस्पर्श इनकी अभिलाषा करना. यह अनाम है. आत्माके शुद्ध स्वरूपको जानकर उसमें परिणति करना अर्थात् प्रशस करना ब्रह्मचर्य है. इस ब्रह्मचर्य को धारण करनेवाले आत्माको प्रम कहते हैं. इस ब्रझसे विरुद्ध जो खीके शरीरके रूपादि ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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