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बुलाराधना
अर्थात् जो जिनमंदिर बनवाते हैं उनको स्वर्ग विमानकी प्राप्ति होती है, तथा जो आराधना मन्थपर टीकायें रचते हैं उनको समाधिमरणकी प्राप्ति होती है.
श्री अपराजितसूरिका कालनिर्णय करने में हम असमर्थ है, क्योंकि अभी इनके अस्तित्वकालका निर्णय इतिहासों को भी ठीक मालूम नहीं हुआ है.
श्री. पं. आशाधरजी जैनधर्मप्रभावक महाकवि हो गये हैं, इनका काल विक्रमका १३ वा शतक निर्णीत है. इन्होंने अनेक जैन साहित्य के प्रन्य बनाये हैं. इनका साहित्य बहुत प्रौढ व गंभीर है. इनके समान उद्भट विज्ञान गृहस्थोंमें बहुत विरल हुए हैं. इनका यहां वर्णन करनेका कारण यह है कि इन्होंने भगवती आराधना मन्थपर मुलाराधा नामकी पञ्जिका टीका रवी है. यह टीका संक्षिप्त है. इसलिये प्रत्येक अध्यायके अन्तमें वे पदप्रमेवाप्रकाशीकरणप्रवणे मूळाराधनादर्पण' ऐसा उल्लेख करते हैं. अर्थात् इन्होंने कठिन पदोंका खुलासा करके उनके प्रतिपाय विषयका निर्णय किया है. जो टीका श्लोकके अथवा गाथाके संपूर्ण पक्षका खुलासा न कर कुछ पका-फठिन पदों का स्पष्टीकरण करती है उस टीकाको पञ्जिका या पंधिका टीका कहते हैं. सुलभ गाथाओंका स्पष्टीकरण करनेकी
astra न होनेसे स्पष्टम् ' इतना ही लिखकर वे आगे चले गये हैं यह टीका किस समय बनाई गई है इसका खुलासा उन्होंने अंथ के अन्त में स्वप्रशस्ति में जरूर किया होगा परंतु इस टीकाकी जो प्रति हमको मिली है उसमें प्रशस्ति पूर्ण नहीं है इससे हम खुलासा करनेमें असमर्थ हैं. पंडितजीकी टीका बहुत विद्वत्तापूर्ण है. उन्होंने इस टीकाम अनेक श्लोक अन्य जैन ग्रन्थोंकि विषयका खुलासा करनेके लिये दिये हैं.
भगवती आराधनावर अनेक आचार्यांने टीकायें और निबंध लिखे हैं, पंडितजीने सीन चार टीकायें तथा सीन चार निबंधका आश्रय लेकर अपनी टीका रची है, आचार्य जयनंदि, प्राकृत टीका कर्ता [ नाम ज्ञात नहीं है ] श्रीचंद्राचार्यकृत भगवती आराधनाका टिप्पनक, विदुग्धप्रीतिवर्धनी नामक भन्थ, विजयाचार्यकृत विजयोद्या टीका, श्री अमितस्थाचार्यकृत लोकरूप भगवती आराधना ऐसे अनेक ग्रंथोंका आश्रय लेकर प्रस्तुत टीका पंडितजीने लिखी है. इससे पंडितजीकी अन्वेषण करनेवाली बुद्धिका परिचय पाठकगण को मालुम पढेगा, पंडितजीने इस महान्प्रन्धके विषयोंका खूब मनत करके अपनी टीका आठ आश्वासो में विभक्त की है. यह टीका आठ हजार श्लोक प्रमाण होगी ऐसी हमारी धारणा है.
प्रस्तावना