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________________ ( ३६६ ) काय के वशीभूत आत्मा असंयमी मिथ्यादृष्टि है uri garfi कषायवश ब्रात्मवान् । भवेदसंयतो नूनं मिध्यादृष्टि । कुमामंगः || २५६६॥ मूलाधार प्रदोष ] [ नवम अधिकार अर्थ -- चारित्र उसी को कहते हैं जो कषायरहित होता है, इसीलिये जो आत्मा कषाय के दशीभूत हैं वह अवश्य ही असंयमी हैं तथा कुमार्गगामी मिथ्यादृष्टि है ।। २५६६ ।। कैसा सुनि मोक्षमार्गी है दोपिशमितो विश्व कषाये ज्योतिशान्तघोः । तवेवसंयतः पूजयोभवेद् मानो शिवाध्वगः ।।२६००॥ अर्थ - अत्यन्त शांत बुद्धि को धारण करनेवाला भुमि जब अपने कषायों को अत्यन्त शांत कर लेता है तभी वह संयमी, पूज्य, ज्ञानी और माक्षमार्ग में चलने वाला कहलाता है || २६०० ॥ अन्तिम समय गया में प्रवेश करने का निषेध काले यतैः स्वस्थ प्रवेशती वरम् । प्रवेशनं विवाहेत रागोत्पतिविवाहतः ।। २६०१ ।। अर्थ- सुनियों को अंतिम समय में ( समाधि मरण के समय ) अपने गरग में प्रवेश नहीं करना चाहिये । उस समय अपने गण में प्रवेश करने को अपेक्षा विवाह में प्रवेश करना अच्छा क्योंकि विवाह में भी राग की उत्पत्ति होती है और अपने गण में भी राग की उत्पति होती है ।। २६०१ ।। गण में प्रवेश करने से उत्पन्न दोषों का निर्देश भवेत्पुनः सर्वदोषोत्पत्यादिहेतुकः । शिष्यादिमोहसंयोगातस्मान्मृत्यो गणं त्यज ॥। २६०२ ॥ अर्थ- अपने गण में शिष्यादिक का मोह उत्पन्न हो जाता है इसीलिये अपने गण में सब तरह के दोष उत्पन्न हो सकते हैं अतएव हे मुने ! समाधिमरण के समय तू अपने गरका त्याग कर ।।२६०२ ।। परगण में समाधिमरण करने से लाभ - वीजलादीनामभावे जायतेऽत्र न अंकुरोखिल बीजानां वृद्धिहेतुः फलप्रदः ।। २६०३ ।। कर्मणां च कषायाणांतोत्पत्तियमिनां भवेत् ॥ २६०४ ।। + तथा शिष्या दिगोत्यरागढ़ बाद्यभावतः के अर्थ - जिसप्रकार मिट्टी और जल नहीं हो सकता तथा बिना अंकुर के वह न बढ़ अभाव में बीज से अंकुर उत्पन्न सकता है और न उस पर फल लग
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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